Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 76
________________ ROCRACREA SSASARAI नपेमरागापरमत्थिबंधो,नबोहिलाभापरमथिलाभो ___अर्थः-धर्मकार्यो समान उत्कृष्ट कार्य नथी. जीवहिंसा समान उत्कृष्ट अकार्य नथी. प्रेमराग समान उत्कृष्ट बंधन नथी. बोधिलाभ समान उत्कृष्ट लाभ नथी. ॥ १२ ॥ नसेवियत्वा पमया परक्का, न सेवियत्वा पुरिसा अविजा; * नसेवियवाअहिमानिहीणा,नसेवियवापिसुणामणुस्सा१३ अर्थः-डाह्या पुरुषे पारकी स्त्री न सेववी. विया रहित पुरुषोने न सेववा. अभिमानी तथा नीच पुरुषोने न से| ववा. चाडिया पुरुषोने न सेववा. ॥ १३ ॥ जे धम्मिया ते खलु सेवियबा,जेपंडियाते खलु पूछियवा; जेसाहुणोतेअभिवंदियव्वा,जे निम्ममातेपडिलाभियव्वा१४६ | अर्थः-जे पुरुषो धर्मवंत होय, ते पुरुषो निश्चे सेववा. जे पुरुषो पंडित होय, ते पुरुषो निश्चे पूछवा योग्य जाणवा. 2 जे साधु मुनिराज छे, ते सर्व प्रकारे यांदवा थोग्य जाणवा. जे साधुओ निर्मम होय तेवा मुनिराजोने अशनादिक वहोराववा।१४। | पुत्ता य सीसाय समं विभत्ता,रिसी य देवाय समं विभत्ता; । मुखातिरिख्खायसमं विभत्ता,मुआदरिदायसमविभत्ता ॥ ३४

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