Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 67
________________ C अर्थः-अभव्य जीव अनुभव युक्त भक्ति, जिनेश्वरनी आज्ञा प्रमाणे साधर्मिनी सेवा भक्ति, संसारथी वैराग्यपणुं तेमज शुक्लपक्ष न पामे.॥७॥ C जिणजणयजणणिजाया,जिण जख्खाजख्खणी जुगपहाणा आयरियपयाइ दसगं, परमत्थ गुणढ्ढ मप्पत्तं ॥ ८॥ अर्थः--जिनेश्वरना माता, पिता, स्त्री, जक्ष, जक्षणी अने युगमधान पण न थाय. वल्ली आचार्यादि दश पदनो | विनय तेमज परमार्थथी अधिक गुणवंतपणुं न पामे ॥ ८ ॥ अणुबंधहेउसरूवा, तत्थ अहिंसा तिहा जिदि दव्वेण य भावेण य, दुहावि तेसिं न संपत्ता ॥९॥ ___ अर्थ:--वली अभव्यजीव अनुबंध हेतु अने स्वरूप एवी ऋण प्रकारे श्री निलेश्वरे कहेली अहिंमा द्रव्य अने भाव एवा बे भेदथी न पामे. ॥ ९॥ CCORRCHCHE CORRECRUCHAR अथ पुण्यपाप कुलकम्. छत्तीसदिनसहस्सा, वाससये होइ आउपरिमाणं; डिज्झंतं पईसमयं, पिच्छओ धम्म मि जइअवं ॥१॥

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