Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 72
________________ होगस्सनो काउसम्म करनार जीव बांधे.॥१५॥ बंधई अहियं जीवो, पणवीसुसास उस्सग्गो॥१५॥ अर्थ:-एकसठ लाख, पात्रीस हजार, बसो मे दश पन्योपमनुं देवतानुं आयुष्य पचीस पासोबास या एक एवं पाव परायाणं, हवेओ निरयाओ अस्स बंधोवि%3B * इअनाउसिरिजिणकित्ति-अंमिधम्ममि उज्झमंकुणह।१६ ...अर्थः-रे भव्य जीवो ! पाप करनाराने ए प्रमाणे नरकनो बंध पण होत . एम पाणीने भी बीने घरे कोण श्री गौतम कुलकं. लुद्धा नरा अथ्थ परा हवंति, मूढा नरा काम परा हवंति, बुद्धानराखंतिपराहवंति, मिस्सानरातिन्निविआयरंति॥१॥ ४ धर्मने विषे उद्यम करो. ॥ १९ ॥ CROREGRECRUGRICUCKORAA अर्थ:--लोभी पुरुषो धन मेळवग तत्पर होय छे. मूर्ख पुरूषो काम भोगमा तत्पर होय हे तत्त्वना पान पुरुषो मामा तत्पर होय छे अने मिभ पुरुषो धन, काम, अने समायाँ तत्पर होय छे. ॥१॥ ते पंडिया जे विरया विरोहे, ते साहुणो जे समयंचरंति; 5.

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