Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 69
________________ पहोर पोसह करनारने देवतानां आयुष्यनो एटलो बंध थाय छे. ॥ ५॥ तिसयसगं चत्तकोडि, लख्खा बावीस सहस बावीसा; दुसय दुवीस दुभागा, सुराउबंधो य इगपहरे ॥५॥ मर्थः--प्रणसो सुडताली क्रोड, बावीस लाख, बावीस हजार बसो भने बावीस, वली पर पे भाग. पर्पया एक | दस लख्ख असीय सहसा, मुहुत्त संखाय होइ वाससए; जइ सामाइअसहिउ, एगोविअत्ता इमो लाहो ॥६॥ _अर्थः-सो वर्षनां मूहूर्त (बे घडीयो ) दस लाख अने ऐसी हजार पाय छे. जे जीव ए एक मुहूर्त सामायिक 18 बहे तो तेने आगली गाथामा कहेशे तेटको लाभ थाय छे. ॥ ६॥ बाण वयकोडीओ, लख्खा गुणसडि सहस्स पणवीसं; नवसयपणवीस जूआ, सतिहा अडभाग पलियस्स॥७॥ ___अर्थः-वाणुं क्रोड, ओगणसाठ लाख, पच्चीस हजार नवसो पच्चीस अने उपर एक पल्योपमना पाठीया सात भाग; एटलं देवगतिनुं आयुष्य वे घडी सामायक करनार जीव बांधे छे. ॥ ७॥ वाससये घडिआणं, लख्खिगवीसं सहस्स तह सही;

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