Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 44
________________ जीवंतसामिपडिमाए, सासणं विअरिऊण भत्तीए; । पव्वइऊण सिद्धो, उदाइणो चरमरायरिसी ॥१२॥ ___अर्थः-जीवंत (महावीर स्वापीनी प्रतिमा माटे भक्तियी शासनमा विचरीने (गाम गरास आपीने) छेवटे दीक्षा है। ग्रहण करीने उदायी नामनो छेल्लो राज-ऋषि मोक्षगतिने पाभ्यो. ॥ १२ ॥ / जिणहरमंडिअवसुहो, दाउं अणुकंपत्तिदाणाई; तिथ्थप्पभावगरेहिं, संपत्तो संपइराया ॥ १३ ॥ _भर्थः- जेणे पृथ्वीने मिनचैत्योथी अंडित करी छे एवो संपति राजा अनुकंपादान अने भक्तिदान देवावडे शासनप्रभावकनी पंक्तिमा लेखायो. ॥ १३ ॥ दाउं सद्धासुद्धे, सुद्धे कुम्मासए महामुणिणो; सिरिमूलदेवकुमारो, रजसिरि पाविओ गुरुई ॥ १४ ॥ भा-रुडी श्रद्धावडे-शुद्ध भावयुक्त निर्दोष एवा अहदना बाकळा महा मुनिने देवावडे श्री (जितशत्रु राजानो पुत्र) मूळदेव कुमार विशाळ राज्य लक्ष्मीने पाम्यो. ॥ १४ ॥ ६ अइदाण मुहर कविअण,विरइअसयसंखकव्व विच्छरिअं; १८

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