Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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अर्थ:-हान (मांदा) मनिने बापरवा योग्य वस्तुओ बग़र मूल्ये भापवायी रत्नकंबल भने पावनाचंदननो ₹ मापारी पाणीयो-पणिक तेज भवमा सिद्धिपद पाम्योः ॥ ८॥
दाऊण खीरदाणं, तवेण सुसिअंगसाहुणो धणिअं; जणजणिअचमकारो, संजाओ सालिभद्दोवि ॥९॥
अर्थः-तपस्यावडे शोषित देहवाळा साधु मुनिराजने क्षीरतुं दान देवाथी तत्काळ सहु कोश्ने चमत्कार उपजारे एवो ऋद्धिपात्र शालिभद्र कुमार थयो. ॥ ९ ॥ जम्मंतरदाणाओ, उल्लसिआऽपुवकुसलझाणाओ; कयउन्नो कयपुन्नो, भोगाणं भायणं जाओ॥१०॥
अर्थः-पूर्व जन्ममा दीधेला दानना प्रभावी प्रगट थयेला अपूर्व ( अद्भूत ) शुभ ध्यान थकी पुण्यशाळी एयो | कयवनो शेठ विशाळ मुख भोगनो भागी थयोः ॥ १० ॥ घयपूस वथ्थपूसा, महरिसिणो दोसलेसपरिहीणा; लद्धीई सब्वगच्छो-वग्गहगा सुहगई पत्ता ॥११॥
अर्थः-बीलकुल दोष रहिन एवा घृतपुष्य अने वपुष्य नामना महा मुनिओ स्वलन्धिवडे सकळ भक्ति करता छतां सद्गतिने पाम्या. ॥ ११ ॥

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