Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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उप्पन्न दिवनाणा, मिगावई जयउ सुहभावा ॥ ५ ॥
अर्थ:- निजदोष (अपराध) नी निंदा गर्दा करीने गुरुणीनां चरणनी सेवा करतां जेणीने शुभ भावधी केवळज्ञान उपन्यु ते मृगावती साध्वी जयवंती वर्तो ! ॥ ५ ॥
भयवं ईलाइपुत्तो, गुरुए वंसंमि जो समारुढो;
दहूण मुणिवरिंद, सुहभावओ केवली जाओ ॥ ६॥
अर्थ:-मोटा वांस उपर नाचवा माटे चढ्या छतां कोई महामुनिराजने देखी शुभ भावयी पूज्य इकाचिपुत्रने केवलज्ञान प्रगट थयुं. ए सद्भावनेाज प्रभाव समजत्रो ॥ ६ ॥
कविलो अ बंभणमुणी, असोगवणिआई मज्झयारंमि; लाहालोहत्ति पयं, पढंतो (झायंतो ) जायजा इसरो ॥७॥
अर्थ:- कपिल नामनो ब्राह्मण मुनि अशोक वाटिकामां "जहा काहो नहा लोहो: लाहा लोहो पवई " ए पदनी विचारणा करतो शुभ भावयी जातिस्मरण ज्ञान पायो ॥ ७ ॥
खवग निमंतणपुत्रं, वासिअभत्तेण सुद्धभावेण;
भुंजतो वरनाणं, संपत्तो कूरगडू वि (कूरगड्डूओ ) ॥ ८॥
अर्थ:-वासित भाववडे तपस्वी साधुओने निमंत्रण करवा पूर्वक भोजन करता शुद्ध भावथी कूरगडमुनि केवळज्ञान पाया. ८
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