Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 58
________________ थरहरिअधरं झलहलिअ-सायरं चलियसयलकुलसेलं; जमकासी जयं विण्ह, संघकए तं तवस्स फलं ॥१९॥ ___ अर्थ:-श्री संघनं कष्ट निवारण करवा माटे विष्णुकुमारे लक्ष योजनपमाण रुप विकुव्यु त्यारे पृथ्वी कंपायमान थइ, सागर जळहळ्या-हाळकलोल थया, अने हिमवंतादिक पर्वतो चलायमान थया अने छेनटे श्री संघन रक्षण | सर्व तपन फळ जाणधुं ॥ १९ है| किं बहुणा भणिएणं, जं कस्सवि कहवि कथ्थवि सुहाई; दीसंति(तिहुअण)भवणमझे,तथ्थ तवोकारणंचेव २० | ___ भर्थः-तपनो प्रभाव केटलो वर्णवी शकाय ? जे कोइने कोइ पण प्रकारे क्यांय पण त्रिभुवन मध्ये मुख-समाधि || प्राप्त थाय छे त्या सर्वत्र (बाह्य अभ्यंतर) तपन कारणरुप छे एमचोकस समजवू अने तेनुं आराधन करका यथाविध उद्यम सेवको. _ अथ श्री भावकुलकम्. कमठासुरेण रइयंमि, भीसणे पलयतुल्ल जयबोले; ( भावेण केवललच्छि, विवाहिओ जयउ पासजिणो॥१॥ CAPRICORRECRUCAKACRICK

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