Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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दुग्गाभिग्गहनिरओ, अजुणओ मालिओ सिद्धो॥१२॥/.
सर्थः--पति दिवस ( भूतावेशथी ) सात सात जणनो वध करीने छेवटे वीरप्रभु पासे दीक्षा ग्रही जे घोर-दुष्कर अभिग्रह पाळवामां उजमाळ यवो ते अर्जुनमाळीमुनि सिद्धिपद पाम्यो.॥ १२॥ .
नंदीसररुअगेसु वि, सुरगिरिसिहरेवि एगफालाए; जंघाचारणमुणिणो, गच्छंति तवप्पभावेणं ॥१३॥
अर्थः-नंदीश्वर नामना आठमा द्वीपे तथा रुचक नामना तेरमा द्वीपे तेमज मेरु पर्वतना शिखरो उपर एक फाळे करी जंघाचारण अने विद्याचारण मुनिओ तपना पभावे जइ शके छे. ॥ १३ ॥
सेणियपुरओ जेसिं, पसंसिअं सामिणा तवोरुवं; | ते धन्ना धन्नमुणी, दुन्हवि पंचुत्तरे पत्ता॥१४॥
अर्थः-श्रेणिकराजानी पासे पीर परमात्माए जेमतुं तपोबळ वखाण्यु हतुं ते धनोनि (शालिभद्रना पनेवी) अमे धन्नकाकंदी बने मुनिको सर्वार्थ सिद्ध विमाने गया. ॥ १४ ॥
सुणिऊण तव सुंदरी-कुमरीए अंबिलाण अणवरयं; सडिं वाससहस्सा, भण कस्स न कंपए हिअयं ॥१५॥

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