Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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चित्तवाळा (दृढ) रह्या ते श्री वज्रस्वामि महाराज जयवंता वर्ताः ॥ १३ ॥
RECORIANRAKANKARI
लीलाइ जेण दलिओ, स थूलभद्दो दिसउ भदं ॥ १२॥ है।
अर्थः-हरि, घर, ब्रह्मा अने इन्द्रना मदने गाळी नाखनारा कामदेवनी शक्तिनो गर्व जेणे लीला मात्रमा दळी नाख्यो ते स्थूलभद्र (मुनिराज ) अमारु कल्याण करो. ॥ १२ ॥ | मणहरतारुन्नभरे, पथ्थिजंतो वि तरुणि नियरेणं; सुरगिरिनिचलचित्तो, सो वयरमहारिसी जयउ॥१३॥
अर्थः-मनोहर यौवन वयमा अनेक स्त्रीसमुदायवडे (विषय माटे) प्रार्थना कराता छतां जे मेरुगिरि जेवा निश्चळ | थुणिउं(मुणिउ) तस्स नसक्का,सस्ससुदंसणस्सगुणनिवह: ।। जो विसमसंकडेसु वि, पडिओ वि अखंड सीलधणो॥१४॥
. अर्थः-ते मुटर्शन श्रावकना गुणगणने गावा इन्द्र पण समर्थ थइ शके नहि के जे भारे संकटमा आवी पड्या | | छतां अखंड शीलने राखी शक्यो छे. ॥१४॥ | सुंदरि सुनंद चिल्लण-मणोरमा अंजणा मिगावई अ; | जिणसासणसुपसिद्धा, महासई ओ सुहं दिंतु ॥१५॥
अर्थः-मुंदरी, सुनंदा, चिलणा, मनोरमा, अंजना अने मृगावती विगेरे जिनशासनमा प्रसिद्ध थयेली महा |8|२१

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