Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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सीलं उत्तमवित्तं, सीलं जीवाण मंगलं परमं; | सीलं दोहग्गहरं, सीलं सुख्खाण कुलभवणं ॥२॥
अर्थः-शीक-सदाचरणज भागीओ→ उत्तम धन के, शील अ परम मंगलरूप के. शीला दुःख दारिद्रने हरनारं | भने शील ज सकळ मुख→ धाम के ॥२॥ |सीलं धम्मनिहाणं, सीलं पावाण खंडणं भणियं; |सीलं जंतूण जए, अकित्तिमं मंडणं परमं ॥३॥
अर्थ:-शील धर्मनुं निधान है. शील-सदाचरणज पापने खंडनकारी कणु के अने शीला जगतमा पाणीगोनी है। | स्वाभाविक श्रेष्ठ शणगार के एम भाख्यं ॥३॥
नरयदुवारनिरंभण, कवाडसंपुडसहोअरच्छाय; सुरलोअधवलमंदिर-आरुहणे पवरनिस्सणिं ॥४॥ ___अर्थः-शीलज नरकनां दार बंध करवाने कमानी जोड जे, जबरजस्त छे, अने देवलोकना उज्वळ विमानो पर 18/ | बारूद थवाने उत्तम नीसरणी समान के. ॥ ४॥
सिरिउग्गसेणधूया, राईमई लहउ सीलवईरहें;

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