Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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धम्मथ्थकामभेया, तिविहं दाणं जयंमि विख्खायं; तहवि अ जिणिदमुणिणो, धम्मदाणं पसंसंति ॥ २ ॥
अर्थ:-धर्म दान, दान अ काम दान एम ग प्रकारनुं दान दुनीआमां प्रसिद्ध छे, तो पण जिनेश्वर मभुनी ज्ञाना रसिक निओ धार्मिक दानने ज पशंसे छे, ॥ २ ॥
दाणं सोहग्गकरं, दाणं आरुग्गकारणं परमं; दाणं भोगनिहाणं, दाणं ठाणं गुणगणाणं ॥ ३ ॥
अर्थ:-दान सुख-सौभाग्यकारी छे. दान परम आरोग्यकारी छे. दान पुण्यनुं निधान छे एटले भोगफलकारी के भने अनेक गुणगणोनुं ठेकाणुं छे. ॥ ३ ॥
दाणेण फुरइ कित्ती, दाणेण होइ निम्मला कंति; दाणावजिअहिअओ, वैरी वि हु पाणियं वहइ ॥ ४॥
अर्थ:- दानवडे कीर्ति बधे छे, दानथी निर्मळ कांतिरूप लावण्य, सुख सौभाग्य वधे छे भने दानयी क्श थयेला - हृदयबाळो दुश्मन पण दातारना घरे पाणी भरे छे. ॥ ४ ॥
धणसथ्थवाह जम्मे, जं घयदाणं कथं सुसाहूणं,

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