Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 28
________________ १० अर्थ:- ४ आदान-निक्षेपणासमिति - आपणी पोतानी उपधि प्रमुख पुंजी - ममार्जिने तेने भूमि उपर स्थापन करूं तेमज भूमि उपरथी ग्रहण करूं. जो तेम पुंजत्रा ममार्जनामा गफलत थाय तो त्यांज नवकार महामंत्रनो उच्चार करें (नवकार गर्नु) जथ्थ व तथ्थव उज्झणि, दंडगउवहीण अंबिलं कुव्वे; सयमेगं सज्झायं, उस्सग्गे वा गणेमि अहं ॥ १७॥ अर्थः- दांडो प्रमुख पोतानी उपधि ज्यां त्यां [ अस्तव्यस्त ढंग घडा वगर ] मूकी देवाय तो ते बदल एक आर्यचिल करूं अथवा उभा उभा काउसग्ग मुद्राए रही एक सो श्लोक या सो गाथा जेटलुं सझाय ध्यान करूं ॥ १७ ॥ मत्तगपरिवर्णमि अ, जीवविणासे करेमि निव्वियं; अविहीइ विहरिऊणं, परिठवणे अंबिलं कुव्वे ॥ १८ ॥ अर्थ:-५ पारिठावणिया समिति - लघुनीति बडीनीति के खेळादिकनुं भाजन परठवतां कोइ जीवनो विनाश थाय तो faat करूं अने अविधिथी ( सदोष ) आहार पाणी प्रमुख वहोरीने परठवतो एक आयंबिल करुं ॥ १८ ॥ अणुजाणह जस्सुग्गह, कहेमि उच्चारमत्तगठाणे; तह सन्ना डगलग जोग, कप्पतिप्पाइ वोसिरे तिअगं । १९ । अर्थ:-वीनीति के लघुनीति करवाना के परठववाना स्थाने 'अणुजाणह जस्सग्गहो ' प्रथम कहुं, तेमन ते लघु-वडी नीति पाणी छेप अने डगल प्रमुख परठव्या पछी त्रण वार 'वोसिरे ' ॥ १९ ॥ १०

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