Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
View full book text
________________
18 . अर्थः-२ भाषासमिति-उघाडे मुखे (मुहपत्ति राख्या वगर) बोलुंज नहि. तेम छतां गफलतथी जेटली वार खुल्ला
मुखे बोली जाउं तेटलीवार (इरियावहीपूर्वक) लोगस्सनो काउस्सग्ग कलं. ॥ १३ ॥ असणे तह पडिक्कमणे, वयणं वजे विसेसकजविणा; सिक्किय मुवहिं च तहा, पडिलेहंतो न बेमि सया॥१४॥
अर्थः-आहार पाणी करता तेमज भतिक्रमण करता कोइ महत्वना कार्य वगर कोइने का कहुं नहि एटछे के कोइ संगाते वार्तालाप करुं नहि. एज रीते आपणी ( सुखे निर्वही शकाय अने उपयोगमा लई शकाय एटली बधी) उपधिनी पडीलेरणा करता हुं कदापि बोलु नहि. ॥ १४ ॥ अनैजले लम्भंते, विहरे नो धावणं सकज्जेणं; अगलिअजलं न विहरे, जरवाणीयं विसेसेणं ॥१५॥ ___अर्थः-३ एषणा समिति-धीजां निर्दोष मासुक (निर्जिव) जळ मळता होय त्या सुधी पोताने प्रयोजन (खप) छता धोवण (वाल्लं जळ) हुं ग्रहण करु नहि. वळी अणगळ (गाळ्या वगरनु) जळ हुं लहुं नहि अने जरवाणी (परेलं ) तो विशेष करीने लेउ नहि. ॥१५॥ सिक्कियमुवहिमाइ, पमजिउं निख्खिवेमि गिन्हेमि; जइ न पमज्जेमि तओ, तथ्थेव कहेमि नमुक्कारं ॥ १६॥
R-52-500

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112