Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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परमिहिनवपयाणं, सयमेगं पयदिणं समरामि अहं, | अह देसणआयारे, गहेमिनिअमे इमे सम्मं ॥७॥ B: अर्थः-परमेष्टी नवपद ( नवकार महामंत्र ) → एकसो वार हुं सदाय रटण करूं. ॥ ७ ॥ | देवे वंदे निच्चं, पणसक्कथ्थएहिं एकवारमहं; | दोतिन्निय वा वारा, पइजामं वा जहासत्ति ॥८॥
अर्थः-पांच शक्रस्तव वडे सदाय एक वखत देववंदन करुंज अथवा वे वखत, त्रण वखत के पहोरे पहोरे यथाअठ्ठमीचउद्दस्सीसुं, सव्वाण वि चेइयाइं वंदिज्जा; | सब्वेवि तहा मुणिणो, सेसदिणे चेइअं इक्कं ॥९॥
__अर्थ:-दरेक अष्टमी चतुर्दशीने दियसे सघळां देरासरो जुहारवां तेमज सघळाय मुनिजनोने वांदवा. त्यारे बाकीना २ दिवसे एक देरासरे (तो) अवश्य जवं. ॥९॥
पइदिण तिन्निय वारा, जिढे साहू नमामि निअमेणं; | वेयावच्चं किंची, गिलाण वुढ्ढाइणं कुव्वे ॥१०॥
शक्ति आळसरहित देववंदन करु.॥८॥.
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