Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 9
________________ श्रीसोमसुंदरसूरेः शिष्येण जिनहर्ष गणिनाकृतं गुणानुराग कुलकं. सयलकल्लाणनिलयं, नमिऊण तित्थनाहपयकमलं; परगुणगहणसरूवं, भणामि सोहग्गसिरिजणयं ॥१॥ अर्थ:-सफल कल्याणना निवास स्थान तीर्थकर भगवानना चरणकमळने नमीने सौभाग्यश्रीकारक एवं पराया गुणोने ग्रहण करवानुं स्वरूप कहुं छु ॥ १ ॥ उत्तम गुणाणुराओ-निवसइ हिययंमि जस्स पुरिसस्स, आतित्थयरपयाओ, न दुल्लहा तस्स रिद्धीओ ॥२॥ अर्थः-जे पुरुषना हृदयमा उत्तम गुणवान जनो तरफ अनुराग वसतो होय तेने तीर्थकर पद सूचीनी रिद्धीओ दुर्लभ नथी. ते धन्ना ते पुन्ना, तेसु पणामो हविज महनिचं; जेसिं गुणाणुराओ, अकित्तिमो होइ अणवरयं ॥३॥ . अर्थः-तेओ वखाणवा लायक छे, तेओ पुण्यशाली छे अने तेओना प्रते मारो हमेश नमस्कार हो के जेमने EN विषे निरंतर खरेखरो गुणानुगग रहेछे ॥३॥

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