Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ सिरिसोमसुंदरपर्यं, सो पावइ सव्वनमणिज्जं ॥ २८ ॥ अर्थ:- गुणानुरामने जे पुरुष सम्यक् रीते या पृथ्वीमा रही चारण करे, ते श्रीसोमसुंदर मद शोषता चंद्र जेवा शांतिमय भने सर्वने नमनीय ( तीर्थकररूप ) पदने पाये ॥ २८ ॥ श्री गुरुप्रदक्षिणा कुलकम्. गोअम सुहम्म जंबु, पभवो सिजंभवाइ आयरिया; अन्नेवि जुगप्पहाणा, पई दिट्ठे सुगुरु ते दिश ॥ १ ॥ अर्थ :- हे सद्गुरुजी ! आपनुं दर्शन कर्ये छते श्री गौतमस्वामी, श्रीसुधर्मास्वामी, श्री जंबुस्वामी, श्री ममवस्वामी भने सिज्जंभव आदिक आचार्य भगवंतो तेमज बीजा पण युग प्रधानोनुं दर्शन कर्यु मानुंं. ॥ १ ॥ अज्ज कयथ्थो जम्मो, अज कयथ्थं च जीवियं मज्झ; जेण तुह दंसणामय-रसेण सत्ताइं नयणाई ॥ २ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112