Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai
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बहु मान बतावता रहे, ॥२५॥
संपइ दूसमसमए, दीसइ थोवो वि जस्स धम्मगुणो; बहुमाणो कायव्वो, तस्स सया धम्मबुद्धीए ॥२५॥
अर्थः-आजना विषम बखतमा जेनामां थोडो पण धार्मिक गुण देखवामां आवे तेना तरफ हमेशां धर्मबुद्धिथी जउ परगच्छि सगच्छे, जे संविग्गा बहुस्सुया मुणिणो; तेसिं गुणाणुराय, मा मुंचं सु मच्छरप्पहओ॥२६॥ ___ अर्थ:-जो के पराया गया अगर पोताना गळा जे वैराग्यवान भने विद्वान मुनिश्रो होय तो तेमना तरफ II गुणरयण मंडियाणं, बहुमाणं जो करेइ सुद्धमणो; सुलहा अन्नभवंमि य, तस्स गुणा हुँति नियमेणं ॥२७॥
अर्थः-गुणरुपी रत्नोथी शणगारापेला पुरुषो जे शुध्ध मन्थी बहु मान करे, तेने बळता भषे ते ते गुणो नियमा एयं गुणाणुरायं, सम्मं जो धरइ धरणि मज्झमि;
मत्सरे भराइ गुणानुगग मुकनो ना ॥ २६ ॥
मुलभ थइ पडे छे ॥ २७॥
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