Book Title: Karmprakruti Author(s): Hiralal Shastri Publisher: Bharatiya GyanpithPage 41
________________ कर्मप्रकृत्ति . यह तो हुआ विवक्षित एक समयमें बँधने और उदयमें आनेवाले कर्म-परमाणुओंकी रचनाका क्रम । इसे ही शास्त्रीय भाषामें निषेक-रचना कहते हैं । इसी क्रमके अनुसार अनादि कालसे प्रति समय प्रत्येक जीवके कर्म-परमाणु बँधते और उदय होते चले आ रहे हैं। अतः हम जब भी जिस किसी समय बँधने और उदयमें आनेवाले परमाणुओंको देखेंगे तो वे हमेशा ही एक समयप्रबद्ध-प्रमाण बँधते और उदय होते हुए दिखायी देंगे । इसका कारण यह है कि पहले जैसे हम एक विवक्षित वर्तमान समयमें आनेवाले कर्म-परमाणुओंकी निषेक-रचना बतला आये हैं उसी प्रकारकी निषेक-रचना उससे एक समय पूर्व बँधे हुए परमाणुओंकी भी हुई है, दो समय पूर्व बँधे हुए परमाणुओंकी भी हुई है, तीन समय पूर्व बँधे हुए कर्म-परमाणुओंकी भी हुई है। इस प्रकार हम पूर्वोक्त काल्पनिक संदृष्टि के अनुसार ४८ समय पूर्व तककी रचनाको सामने रखकर विचार करें तो दिखाई देगा कि विवक्षित वर्तमान समयसे ४८ समय पूर्व बँधे हुए समय-प्रबद्ध के अन्तिम निषेकके ६ परमाणु इस समय निर्जीर्ण हो रहे हैं। उसके बाद अर्थात् ४७ समय पूर्व बँधे हुए समय-प्रबद्ध के उपान्त्य निषेकके १० परमाणु इस समय निर्जीर्ण हो रहे हैं। ४६ समय पूर्वके बँधे हुए में-से ११ परमाणु, ४५ समय पूर्व में बँधे हुए में-से १२ परमाणु निर्जीर्ण हो रहे हैं। इस प्रकारसे आगे-आगे बढ़ते जानेपर आप देखेंगे कि ४८ समयोंके भीतर बँधे हुए कर्म-परमाणुओंके निर्जीर्ण होनेका क्रम इस प्रकार है यहाँ ४८ समयका कथन अबाधा-कालकी विवक्षा न करके किया गया है । यहाँ दिशाबोधके लिए यह संक्षिप्त त्रिकोण-रचनाका संकेत किया जा रहा है। पूरी त्रिकोण-रचना परिशिष्टमें देखिए। ___५ १० १५ 52-5 २० २५ ३० ३५ ४० 365 ................ 5 9 ३ ३५२ ८४ :0mm mr3030 ४४८ ५१२ ५१२ ५५२ ५१२ ५१२ ५१२ ५१२ ५१२ ५१२ ५१२ ६५२ ३८४ ४१६ ४४८ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education InternationalPage Navigation
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