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पाशातही
अनुभागबन्ध
.१४७ घातिना शक्तयः लता-दार्वस्थि-शिलोपमाः खु भवन्ति, घातिया कर्मनिकी शक्ति लतावेलि, दारु काठ, अस्थि हाड, शिला पाषाण इन चार कीसी है उपमा जिनकी ऐसी है। भावार्थ-एक घातियाकम निकी शक्ति लतावत् है, एकनिकी काष्ठवत् , एकनिकी हाडवत् है, एकनिकी शिलावत है। ऐसी चार शक्ति में अनन्ते-अनन्ते भेद हैं। जैसे वेलि काठ हाड पाषाणविर्षे एक-एकमें अनेक भेद हैं कोमल-कठिनादि भेदकरि । अरु जैसे अतिकोमल जघन्यताके भेदतें लेकरि अति कठोर उत्कृष्ट पाषाणके भेद पर्यन्त क्रमवृद्धिसों भेद-वृद्धिसंयुक्त है, तैसे ही लतावत् जघन्य शक्ति ते लेकरि उत्कृष्ट पाषाणवत् शक्तिपर्यन्त क्रमसों शक्तिनिवर्षे अनुभाग-वृद्धि जाननी । आगे आधी गाथामें देशघाती कौन शक्ति है, इस विषे यह कहै हैंदावनन्तभागपयन्तं देशघातिन्यः, ततः सर्वघातिन्यः, दारुके अनन्तवे भाग-पर्यन्त देशघातिया जाननी, तिसतें आगे सर्वघातिया है
___भावार्थ :-लतावत् शक्तिके अनन्त भागनितें लेकरि दारुके केते एक उत्कृष्ट भाग विना अनन्त भागपर्यन्त देशघातिया कर्महुकी शक्ति है। बाकी दारुके अनन्त भागनितें लेकरि अस्थिके अनन्त भाग, शिलाके अनन्त भागपर्यन्त सर्वघातिया शक्ति है। आगे दर्शनमोहकी प्रकृतिनिविर्षे देशघातित्व सर्वघातित्व कहे हैं- ..
देसो त्ति हवे सम्मं तत्तो दारु-अणंतिमे मिस्सं ।
सेसा अणंत भागा अहिसिलाफड्ढया मिच्छे ॥१४२॥ . देशपर्यन्तं सम्यक्त्वं भवेत् , लताके भागतें लेकरि दारुके अनन्तवें भागपर्यन्त जे देशघाति स्पर्धक हैं, ते सम्यक्त्वमिथ्यात्वके हैं। भावार्थ-सम्यक्त्वप्रकृति मिथ्यात्व सम्यग्दर्शन गुणके देशको घाते है, जातें सम्यक्त्वप्रकृति मिथ्यात्वके उदयतें चल मलिन अगाढ दोष सम्यक्त्वमें होय हैं, तातें सम्क्त्वप्रकतिमिथ्यात्व देशघाती जानना। देशघाती स्पर्धक दारुके अनन्तिम भागपर्यन्त हैं, तातें सम्यक्त्वप्रकृतिमिथ्यात्व दारुके अनन्तवें भागपर्यन्त कह्या। जितने लताके अनन्ते भाग हैं, अरु दारुके अनन्तवें भागपर्यन्त जितने अनन्ते. भाग हैं तितनी जातिको सम्यक्त्वप्रकृति मिथ्यात्वको अनुभाग जानना मन्द-तीव्र मध्यमके भेदकरि । ततः दार्वनन्तिमः मिश्रम् , तिन देशघाती स्पर्धकनिकी मर्यादातें आगे दारुको अनन्तवां भाग सो मिश्रमिथ्यात्व है। भावार्थ-दारु शक्तिके अनन्ते भाग हैं, तिन विषे कितने एक बहुत भाग विना अनन्ते भाग देशघातिमें हैं, तिन देशघाति स्पर्धकनितें आगे जो हैं, वे बहुत भाग, तिनके अनन्त खंड करिए तिनमें एक खंड मिश्रमिथ्यात्व है। सो मिश्रमिथ्यात्व जात्यन्तर सर्वघाती है, जातें मिश्रमिथ्यात्वके उदयतें सम्यक्त्व मिथ्यात्व दोनों मिले परिणाम होय हैं। सर्वथा सम्यक्त्वगुणको नाहों आच्छादे हैं, हीनशक्ति-संयुक्त जघन्य सर्वघाती हैं, जानें आचार्यहूने मिश्रमिथ्यात्वको नाम जात्यन्तर सर्वघाती कहा है। सो मिश्रमिथ्यात्व दारुके अनन्त भागके एक खंडविर्षे अपने अनुभागके अनन्त भेद लिये है। शेषाः अनन्तभांगाः अस्थिशिलास्पर्धकाः मिथ्यात्वम् , मिश्रमिथ्यात्वके खंडतें आगे बाकी दारुके अनन्त खंड, अरु अस्थि-शिलाके स्पर्धक ते समस्त मिथ्यात्व हैं। भावार्थमिश्र खंडतें आगे दारुके अनन्त खंड, अस्थिके अनन्त भाग, शिलाके अनन्त भाग इन सबके विषे मिथ्यात्व है अनन्त रस लिए। इस ही भाँति घातिकर्मनिकी देशघाति जे प्रकृति हैं, ते दारुके अनन्तवें भागताई जाननी । अरु जे सर्वघाति हैं ते दारुके बहुत भागनितें लेकरि शिलाके सर्वोत्कृष्ट भागपर्यन्त जाननी। स्पर्धक कहा कहिए ? अनन्त परमाणु मिले तो एक वर्गणा होय । अनन्त वर्गणा मिलिकरि एक स्पर्धक होय है। इस भाँति घातिनिका अनुभाग जानना।
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