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कर्मप्रकृति आगे तिर्यंचायुके बन्ध-कारण कहिए हैं
उम्मग्गदेसगो मग्गणासगो गूढहिययमाइल्लो ।
सढसीलो य ससल्लो तिरियाउं बंधदे जीवो ॥१५॥ यः उत्मार्गदेशकः-जो मिथ्यामार्गका उपदेशक है, मार्गनाशकः-अरु सम्यक् मार्गका नाशक है, गूढहृदयः-अरु जिसके मनकी कछू पाई जाति नाही, मायावी है कुटिलहृदय है, सढशील:-अरु मूर्खस्वभाव लिए है, सशल्यः-अरु माया मिथ्या निदान इनि तीन शल्यकरि संयुक्त है, स जीवः तिर्यगायुर्बध्नाति–सो जीव तिर्यंच-आयुका बन्ध करे है। आगे मनुष्यायुके बन्ध-कारण कहिए हैं
पयडीए तणुकसाओ दाणरदी सील-संयमविहीणो ।
मज्झिमगुणेहि जुत्तो मणुयाऊ बंधदे जीवो ॥१५१॥ यः प्रकृत्या तनुकषायः-जो जीव स्वभाव हीकरि मन्द कषाई है, दानरतः-दानविर्षे रत है, शील-संयमविहीनः-शील अरु संयमते रहित है, मध्यमगुणैर्युक्तः स जीवः मनुष्यायुबध्नाति-मध्यमगुणोंकरि संयुक्त है, वह जीव मनुष्यायुका बन्ध करे है। आगे देवायुके बन्ध-कारण कहिए है
अणुवद-महव्वदेहि य बालतवाकामणिज्जराए य। .
देवाउगं णिबंधइ सम्माइट्ठी य जो जीवो ॥१५२॥ जीव अणुव्रत-महावतैः देवायुर्बध्नाति-सम्यग्दृष्टि जीव अणुव्रत अरु महाबतकरि देवायुको बांधे है; बालतपसा अकामनिर्जरया च-जो मिथ्यादृष्टि जीव हैं सो अज्ञान तपकरि अथवा अकामनिर्जराकरि देवायुको बांधे हैं। यः सम्यग्दृष्टिः सोऽपि-जो केवल सम्यग्दृष्टि है सो भी देवायुका बन्ध करै है। आगे नामकर्म के बन्ध-कारण कहै हैं
मन-वयण-कायवको माइल्लो गारवेहि पडिबद्धो ।
असुहं बंधदि णामं तप्पडिवखेहिं सुहणामं ॥१५३॥ यः मन-वचन-कायवक्र:-जो जीव मनवचनकायकरि वक्र हैं, मायावी-कुटिल मायाचारी है, गारवैः प्रतिबद्धः-रस ऋद्धि साता इन तीन गारवकरि संयुक्त है, स अशुभं नामकर्म बध्नाति–सो जीव अशुभनामकर्म बांधे है। तत्प्रतिपक्षः शुभनाम बध्नाति-तिसतें जो प्रतिपक्षी जीव कहिए मन बचन कायाकरि सरल निष्कपट कुटिलता-रहित, गारव-रहित सो शुभनामकर्मकू बांधे है। आगे तीर्थंकर प्रकृति नामकर्मके बंधके सोलह कारण कहिए है
दंसणविसुद्धि विणए संपण्णनं च तह य सीलवदे । अणदीचारोऽभिक्खं णाणुवजोगं च संवेगो ॥१५४।। सत्तीदो चाग-तवा साहुसमाही तहेव णायव्वा । विज्जावचं किरिया अरहंताइरियबहुसुदे भत्ती ॥१५॥
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