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कर्म प्रकृति
स्व-स्वोत्कृष्ट प्रतिभागेन आपना - आपना जु है उत्कृष्टबन्ध ताके प्रतिभाग करि । भावार्थउस एकेन्द्रियजीवके जिस-जिस प्रकृतिका जैसा जैसा उत्कृष्टबन्ध है तिस तिस प्रकृतिका तैसा तैसा त्रैराशिक विधानकरि जघन्य स्थितिबन्ध जानना । त्रैराशिकविधान गणित विशेष है सो सिद्धान्ततें जानना । गोम्मटसारविषे सो विस्तृत कथन है 1
आगे एकेन्द्रियादि जीवनिके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध मोहनीयकर्मका कहै हैंएयं पणकदि पण्णं सयं सहस्सं च मिच्छवर-बंधो । इ-विगाणं बधो अवरं पल्ला संखूण संखूणं ॥ १३६ ॥
एकेन्द्रिय-विकलानां मिथ्यात्ववरबन्धः एकेन्द्रिय अरु विकल-चतुष्कं द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय असैनी पंचेन्द्रिय यह विकल-चतुष्क इन जीवनिके मिथ्यात्वको उत्कृष्ट बन्ध अनुक्रमतें एकं पञ्चविंशतिः पञ्चाशत् शतं सहस्रं सागरोपमाणि, एक सागर १, पच्चीस सागर २५, पचास सागर ५०, सौ सागर १००, हजार सागर १०००, जानना । असंज्ञी पंचेन्द्रिय १००० सागर । संज्ञी पर्याप्त जीव सत्तरकोड़ाकोड़ी सागर उत्कृष्ट बन्ध करे । पुनः एतेषां अवरबन्धः बहुरि इन एकेन्द्रिय विकल-चतुष्कको जघन्य बन्ध पल्यासंख्येयोनः पल्यसंख्येयोनः, अपनेअपने उत्कृष्ट बन्ध पल्यके असंख्यातवें भाग घाटि, पल्यके संख्यातवें भाग घाटि जघन्य बन्ध जानना ।
भावार्थ - एकेन्द्रिय जीवके दर्शनमोहको उत्कृष्ट बन्ध एक सागर है, तिसमें पल्यको असंख्यातवां भाग जो घाटि करिए तो जघन्य बन्ध होय । विकलचतुष्ककें जो उत्कृष्ट बन्ध है, तिसमें पल्यको संख्यातवां भाग घाटि जघन्य स्थितिबन्ध जानना ।
यह स्थितिबन्ध पूर्ण भया।
आगे अनुभागबन्धको स्वरूप कहै हैं
सुपडीण विसोही तिव्वो असुहाण संकिलेसेण । विवरीदेण जहण्णो अणुभागो सव्वपयडीणं ॥ १४० ॥
शुभप्रकृतीनां तीव्रोऽनुभागः विशुद्धया भवति, शुभ प्रकृतिनिको तीव्र जो है उत्कृष्ट अनुभाग सो उत्कृष्ट शुद्ध परिणामकरि हो है । अशुभानां संक्लेसेन, अशुभप्रकृति निको उत्कृष्ट अनुभाग उत्कृष्ट संक्लेशपरिणामकरि हो है । पुनः सर्वप्रकृतीनां जघन्योऽनुभागः विपरीतेन, बहुरि सर्व प्रकृतिनिका जघन्य अनुभाग पूर्वोक्त कथनतें विपरीतताकरि जानना ।
'भावार्थ - कर्महुका जो विपाक रसको नाम अनुभाग है । सो अनुभाग दोय प्रकार है— उत्कृष्ट जघन्यके भेदकरि । शुभ प्रकृतिनिको उत्कृष्ट अनुभाग शुभ परिणामनिकरि शुभप्रकृतिनिको जघन्य अनुभाग संक्लेश परिणामनिकरि है। अशुभ प्रकृतिनिको उत्कृष्ट अनुभाग संक्लेशपरिणाम निकरि, तथा जघन्य अनुभाग विशुद्धपरिणामनिकरि हो है । शुभाशुभ परिणाम निकी योग्यताकरि उत्कृष्ट जघन्य अनुभाग के मध्य अनुभागविषे अनेक भेद जानने ।
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आगे घातिया कर्मके अनुभागको स्वरूप कहे हैं
सत्ती य लता - दारू- अट्ठी - सेलोवमा हु घादीणं । दारु- अनंतिमभागोत्ति देसवादी तदो सव्वं ॥ १४१ ॥
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