Book Title: Karmprakruti
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 176
________________ १४१ स्थितिबन्ध आगे ते जीव विपाकी कर्म आगिली गाथामें नाम लेकरि कहै हैं बेयणिय गोद घादीणेकावण्णं तु णामपयडीणं । सत्तावीसं चेदे अट्ठत्तरि जीवविवाईओ ॥११६।। वेदनीय-गोत्र-घातीनि एकपञ्चाशत् , सातावेदनीय असातावेदनीय २ उच्चगोत्र नीचगोत्र २ घाति याकर्म ज्ञानावरण ५ दर्शनावरण ६ मोहनीय २८ अन्तराय ५ ये इक्यावन ५१ । नामप्रकृतीनां सप्तविंशतिश्च नामकर्मकी प्रकृति निविर्षे सत्ताईस प्रकृति २७ इति अष्टसप्ततिः जीवविपाकिन्यः भवन्ति ये अठहत्तरि प्रकृति जीवविपाकी होहिं, जातें इनके उदय दुःख-सुख, ऊँच-नीच, ज्ञानावरणादि नारकादि पर्यायरूप जीवके ही परिणाम होहिं तातें जीवविपाकी ए प्रकृति कहिए। ___ आगें नामकर्मकी सत्ताईस प्रकृति जीवविपाकी कौन-कौन, यह नाहीं जानिए है, इनके जानवेको गाथा कहिए है-. तित्थयरं उस्सासं बादर पजत्त सुस्सरादेज्ज । जस-तस-विहाय-सुभगदु चउ गइ पणजाइ सगवीसं ॥१२०॥ तीर्थकर उच्छ्वासं बादर-पर्याप्त-सुस्वराऽऽदेय-यशस्त्रस-विहायः सुभगद्विकम् , तीर्थंकर १ उच्छ्वास २ बादर ३ सूक्ष्म ४ पर्याप्ति ५ अपर्याप्ति ६ सुस्वर ७ दुःस्वर ८ आदेय ६ अनादेय १० यश कीर्ति ११ अयशःकीर्ति १२ त्रस १३ स्थावर १४ प्रशस्त गति १५ अप्रशस्तगति १६ सुभग १७ दुर्भग १८ चतस्रः गतिः चार गतियाँ, पश्च जातयः पाँच जातियाँ इति सप्तविंशतिः ए सत्ताईस प्रकृति नामकर्मकी जीवविपाकी जाननी। आगे ए सत्ताईस प्रकृति और क्रमकरि गाथामें कहै हैं गदि जादी उस्सासं विहायगदि तसतियाण जुगलं च । सुभगादी चउजुगलं तित्थयरं चेदि सगवीसं ॥१२१॥ ___ गतयश्चतस्रः गति चार, जातयः पश्न जातियाँ पाँच, उच्छ वासं उच्छ्वास एक, विहायोगति-त्रसत्रयाणां युगलं च प्रशस्त अप्रशस्त विहायोगति २, त्रस-स्थावर २, सूक्ष्म-बादर २, पर्याप्त-अपर्याप्त २ यह त्रसत्रिकका युगल, सुभगादिचतुर्णां युगलं सुभग-दुर्भग २ सुस्वरदुःस्वर २, आदेय-अनादेय २, यशःकात्ति-अयशःकात्ति २ यह सुभगाद-चतुष्कका युगल, तीर्थकरं तीर्थंकरप्रकृति इति सप्तविंशतिः ए सत्ताईस प्रकृति नामकर्मकी जाननी दूसरी गाथाके क्रमकरि। ये समस्त प्रकृतिबन्ध समाप्त भया । आगे स्थितिबन्ध कहें हैं । प्रथम ही मूलप्रकृतिनिकी स्थिति कहिए है तीसं कोडाकोडी तिघादि-तिदयेसु वीस णाम-दुगे । सत्तरि मोहे सुद्धं उवही आउस्स तेत्तीसं ॥१२२॥ त्रिघातित्रितयेषु त्रिंशत् कोटाकोटी उदधयः तीन घाती ज्ञानावरण दर्शनावरण अन्त. राय अरु तीसरा कर्म कहिए वेदनीय इन चार कर्मविर्षे उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोडी जाननी। नामद्विके विंशतिः नाम-गोत्रकर्मविषे वीस कोडाकोड़ी सागर उत्कृष्ट स्थिति है। मोहे सप्ततिः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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