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स्थितिबन्ध
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स्थावर निर्माण असद्गमन अस्थिरषट्क अस्थिर अशुभ दुर्भग :स्वर अनादेय अयशःकीर्त्ति यह अस्थिरषट्क सागरनाम्नां विंशति कोटीको ट्यः उत्कृष्टा स्थितिः इन इकतालीस प्रकृतिविषे वीस कोडाकोडी सागरकी स्थिति जाननी ।
हस्स रदि उच्च पुरिसे थिरछक्के सत्थगमण देवदुगे । तस्सद्धमंत कोडाकोडी आहार - तित्थयरे ॥ १२७॥
हास्य रत्युच्च पुरुषेषु हास्य रति उच्चगोत्र और पुरुषवेदमें, स्थिरषट्केषु स्थिर शुभ सुभग सुस्वर आदेय यशः कीर्त्ति यह स्थिरषट्क, प्रशस्तगमने प्रशस्त विहायोगति, देवद्विदेवगतिदेवगत्यानुपूर्वी इन तेरह प्रकृतिनिविषे तदर्धम् पूर्वकी कही जु स्थिति वीस कोडाकोडी ताकी आधी दशकोडाकोडी स्थिति जाननी । आहारकद्विकतीर्थकरयोः अन्तःकोटाकोटी आहार कशरीर आहारकांगोपांग और तीर्थंकर प्रकृति इन विषे उत्कृष्ट स्थिति अन्तःकोडाकोडी सागरोपम जाननी । अन्तः कोडाकोडी सागरोपम महा कहिए ? कोटिसागर ऊपर कोडाकोडी सागर मध्य याको नाम अन्तःकोडाकोडी सागरोपम कहिए |
सुर-रियाऊणोघं णिर- तिरियाऊण तिण्णि पल्लाणि । उस द्विविधो सण्णी पजचगे जोगे || १२८||
सुर-नरकायुषोः ओघवत् उत्कृष्टस्थितिबन्धः, देवायु नरकायुकी उत्कृष्ट स्थिति मूलप्रकृतिकी नाई तेतीस सागर जानना । नर- तिर्यगायुषोः त्रीणि पल्यानि, मनुष्यायु- तिर्यंचायु इनकी उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य जानना । यह उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कौन जीवहुकी योग्यताविषै है ? संज्ञिपर्याप्तकानां योग्ये, सेनी पर्याप्तक जीवहुकी योग्यता के विषें है ।
आगे शुभाशुभ प्रकृतिनिको उत्कृष्ट स्थिति कारण कहे हैंसव्वीणमुकस्सओ दु उकस्ससंकिलेसेण ।
विवरीदेण जहण्णो आउगतिगवज्जियाणं तु ॥ १२६ ॥
आयुस्त्रयवर्जितानां सर्वस्थितीनामुकृष्टः स्थितिबन्धः देवायु मनुष्यायु तिर्यंचायु इन तीन आयुष करि वर्जित समस्त ही जु है प्रकृति तिनका उत्कृष्टबन्ध सो उत्कृष्टसंक्लेशेन उत्कृष्ट क्लेश परिणाम करि हो । भावार्थ - मनुष्यायु तिर्यगायु देवायु इनि तीन्योंको उत्कृष्ट स्थितिबन्ध उत्कृष्ट विशुद्ध परिणामहि करि होय । अन्य समस्त ही प्रकृतिनिको उत्कृष्ट स्थितिबन्ध उत्कृष्ट संक्लेश परिणामनि करि होय है । विपरीतेन जघन्यः, पूर्वोक्त अर्थकी विपरीतता करि जघन्य स्थितिबन्ध होय है । भावार्थ-तीन आयुवर्जित सर्व प्रकृतिनिको उत्कृष्ट स्थितिबन्ध उत्कृष्ट संक्लेश परिणामकरि जानना । अरु जघन्य स्थितिबन्ध जघन्य संक्लेश परिणाम अर्थात् उत्कृष्ट विशुद्ध परिणामकरि जानना ।
आगे उत्कृष्टबन्ध कारणवाले जीव कौन-कौन हैं यह कहै हैं
सव्वकस्सट्टिदीणं मिच्छाइट्ठी दु बधगो भणिदो ।
आहारं तित्थयरं देवाउं वा विमोत्तूणं ॥ १३०॥
सर्वोत्कृष्ट स्थितीनां मिथ्यादृष्टिः बन्धकः भणितः, समस्त ही जु है उत्कृष्ट स्थिति तिनको मिथ्यादृष्टि जीव बाँधनेवाला कहा है। कहा करि ? आहारं तीर्थकरं देवायुश्च मुक्त्वा, आहारकशरीर ? आहारकांगोपांग २ तीर्थंकर ३ देवायु ४ इन चार प्रकृति निको छोड़करि । जाते इन चारका बन्धक सम्यग्दृष्टि जीव है ।
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