Book Title: Karmprakruti
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

Previous | Next

Page 177
________________ कर्मप्रकृति १४२ मोहनीयकर्मविर्षे सत्तर-कोडाकोडी सागर उत्कृष्ट स्थिति है । आयुषि शुद्धा त्रयस्त्रिंशत् । आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति शुद्ध तेतीस सागर जाननी। आगे उत्तरप्रकृतिनिको स्थितिबन्ध कहे हैं दुक्ख-तिघादीणोघं सादित्थी-मणुदुगे तदद्ध तु । सत्तरि दंसणमोहे चरित्तमोहे य चत्तालं ॥१२३॥ दुःख-त्रिघातिनामोघवत् , दुःख कहिए असातावेदनीय और तीन घातिया ज्ञानावरण ५ दशनावरण ६ अन्तराय ५ इन वीस उत्तरप्रकृतिनिको स्थितिबन्ध उत्कृष्ट ओघवत् कहिए मूलप्रकृतिकी नाई तीस कोडाकोडी जानना । तु साता-स्त्री-मनुष्यद्विकेषु तदर्धम् सातावेदनीय ३ मनुष्यगत्यानुपूर्वी ४ इन चार प्रकृति निविषे तदर्धम् कहिए पहिली प्रकृति निकी स्थितितें आधी जाननी अर्थात् १५ कोडाकोडी सागर उत्कृष्ट स्थितिबन्ध है । सप्ततिदर्शनमोहे, दर्शनमोहविर्षे सत्तर कोडाकोडीकी स्थिति है। चारित्र मोहे चत्वारिंशत् , चारित्रमोहविर्षे चालीस कोडाकोडी उत्कृष्ट स्थितिबन्ध है। संठाण-संहदीणं चरिमस्सोघं दुहीणमादि त्ति ।। अट्ठरस कोडकोडी वियलाणं सुहुमतिण्हं च ॥१२४॥ संस्थान-संहननानां चरमस्य ओघवत् , संस्थान-संहननके मध्य जो अन्त को हुंडकसंस्थान अरु फाटकसंहनन ताकी उत्कृष्ट स्थिति मूल नामकर्म प्रकृतिवत् वीस कोडाकोडी सागरकी जाननी । द्विहीनं आदिपर्यन्तम् , बहुरि आदि के संहनन-संस्थानताई दोय कोडाकोडी हीन बाकी संस्थान-संहननकी स्थिति जाननी। भावार्थ-वामनसंस्थान कीलकसंहनन इनकी स्थिति अठारह कोडाकोडीसागर, कुब्जकसंस्थान अर्धनाराचसंहनन इनकी स्थिति सोलह कोडाकोडी सागर, स्वातिकसंस्थान नाराचसंहननकी स्थिति चौदह कोडाकोडी सागर, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान वज्रनाराचसंहनन इनकी स्थिति बारह कोडाकोडी सागर, समचतुरस्रसंस्थान वनवृषभनाराचसंहनन इनकी स्थिति दश कोडाकोडी सागर जाननी । विकलत्रयाणां सूक्ष्मत्रिकाणां च अष्टादश कोटीकोट्या, विकलत्रिक द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रियजाति, सूक्ष्मत्रिक सूक्ष्म १ पर्याप्त २ साधारण ३ इन छहों प्रकृतिनिकी उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरकी जाननी। अरदी सोगे संढे तिरिक्ख-भय-णिरय-तेजुरालदुगे। वेगुव्वादावदुगेणीचे तस-वण्ण-अगुरु-तिचउक्के ॥१२॥ इगि-पंचिंदिय-थावर-णिमिणासग्गमण-अथिरछक्काणं । वीसं कोडाकोडी सागरणामाणमुक्कस्सं ॥१२६॥ अरतौ शोके षण्ढे अरतिकर्मविर्षे १ शोकविर्षे २ नपुंसकवेदविर्षे ३ तिर्यग्भय-नारकतैजसौदारिकद्विके तिर्यग्गति तिर्यग्गत्यानुपूर्वी नरकगति-नरकगत्यानुपूर्वी, भय-जुगुप्सा, तैजस-कार्मण, औदारिकशरीर औदारिकांगोपांग, इन पंच द्विकवि, वैक्रियिकाऽऽतपद्विके वैक्रियिकशरीर-वैक्रियिकांगोपांग, आतप-उद्योत इन दोय द्विकविर्षे नीचे नीचगोत्रविर्षे त्रसवर्णागुरुत्रिकचतुष्के त्रस बादर पर्याप्त प्रत्येक यह त्रसचतुष्क, वर्ण गन्ध रस स्पर्श यह वर्ण. चतुष्क, अगुरुलघु उपघात परघात उच्छ्वास यह अगुरुलघु चतुष्क, इन तीन चतुष्कविर्षे, एकेन्द्रिय-पञ्चेन्द्रिय-स्थावर-निर्माणासद्गमनास्थिरषटकानां एकेन्द्रियजाति पंचेन्द्रियजाति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198