Book Title: Karmprakruti
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 135
________________ १०० कर्मप्रकृति दरिद्र देखिए है अरु कोई एक श्रीमान देखिए है, तातें जीव अरु कर्म दोनोंका अस्तित्व सिद्ध होय है । अहमिति प्रतीत्या आत्मनः अस्तित्वं प्रकटीभवति । यदि आत्मा पदार्थ एव न भवेत् तर्हि अहमिति ज्ञानमेव न स्यात . तस्मादात्मनोऽस्तित्वं तितत्येव । अहं कहिए 'मैं हैं इस प्रतीति करि आत्माका अस्तित्व प्रगट सिद्ध होय है। यदि आत्मा नामका कोई पदार्थ हो न होय तो 'अहं' इस प्रकारका ज्ञान ही न होय । तातें आत्माका अस्तित्व सिद्ध है। देहोदएण सहिओ जीवो आहरदि कम्म-णोकम्मं । पडिसमयं सव्यंगं तत्तायसपिंडओ व्व जलं ॥३॥ देहोदयेन सहितः जीवः, देहाः पञ्च औदारिक वैक्रियिकाहारक-तैजस-कार्मणास्तेपामुदयेन प्रतिसमयं सर्वाङ्गः कर्म नोकर्म आकर्षति । देह जो शरीरनामा नामकर्म सो पंच प्रकार है औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस, अरु कार्मणके भेद करि । सो तिनके उदय करि सहित जो यह जीव है सो प्रतिसमय अपने सर्व आत्म-प्रदेशनिकर कर्म अरु नोकर्मको ग्रहण करै है । किंवत् ? तप्तायःपिण्डं जलवत् । यथा तप्तलोहः सर्वाङ्गेण जलमाकर्पति तथा जीवः देहोदयेन कर्म आकर्षति । जैसे अगनिविर्षे खब तपाया जो लोहेका पिण्ड सो सर्वांगकरि जलको खींचे है तैसे ही शरीर नाम कर्मके उदय करि यह जीव सर्व आत्म-प्रदेशनिकरि कर्मको अपने भीतर आकर्षित करै है। . समये-समये जीवोऽयं [ कियन्ति ] कर्माण्याकर्षतीति प्रश्नः, तत्रोच्यते-समय-समय विर्षे यह जीव कितनेक कर्मनिकू आकर्षित करै इस प्रश्नका उत्तर दीजिए है सिद्धाणंतिमभागं अभव्वसिद्धादणंतगुणमेव । समयपबद्धं बंधदि जोगवसादो दु विसरित्थं ॥४॥ सिद्धानन्तिमभागं सिद्धराशेरनन्तिमभागः-सिद्धजीवनिका जो प्रमाण है, उनके अनन्तवें भागप्रमाण कर्मप्रदेशनिकू यह जीव एक समयवि बांधे हैं। पुनः अभव्य सिद्धा. दनन्तगुणमेव-अभव्यराशेरनन्तगुणम् । बहुरि अभव्य जीवनिका जो प्रमाण है, तिनतें अनन्तगुणे कर्मप्रदेशनिकू एक समयविर्षे बांधे है। एतासां वर्गणानां समयप्रबद्धं बध्नाति-इतनी प्रमाण वर्गणानिके समुदायरूप समयप्रबद्धको बांधे है। पुनः किंभूतं समयप्रबद्धम् ? विसदृशं आयुर्वर्जितसप्तकर्मजाति वर्गणासंयुक्तं बध्नाति । बहरि कैसे समयप्रबद्धको बांधे है ? विसदृश भी समयप्रबद्धको बांधे है। जो समय प्रबद्ध बांधे है तिनि वि आयुकर्म-रहित शेष जो सात कर्म-जातीय जो वर्गणा है ति निकरि संयुक्त बांधे है। कस्मात् ? योगवशात् मनवचनकाययोगात्-कैसे बांधे है ? योग जो मन वचन काय तिसके वशि करि यह जीव कर्मवर्गणानि... बांधे है। भावार्थ-जितनी कछू संसार में अभव्यराशि है, तिसको जो अनन्तगुणा कीजे, ता सिद्धराशिको अनन्तमा भाग होय । अरु जो सिद्धराशिके अनन्तवें भागको अनन्तमा भाग , करिए तो अभव्य राशि होय । तिसतें सिद्धराशिके अनन्तवें भाग अरु अभव्यसिद्धतें अनन्तगुणा ए दोऊ गिनती समान है। इस गिनती समान जो वर्गणा मिले तो एक समयप्रबद्ध कहिए। ऐसे समय प्रबद्धको समय-समयविर्षे संसारी जीव निरन्तर बांधे है मन वचन काय इन तीनों योगके उदयतें। इहां कोई प्रश्न करे है कै सिद्धराशिके अनन्त में भाग अरु अभव्यराशिके अनन्तगुणे Jain Education International For Personal & Private Use Only For Personal & Private Use only www.jainelibrary.org

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