Book Title: Karmprakruti
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

Previous | Next

Page 171
________________ १३६ कर्मप्रकृति . एता उदयप्रकृतयः भणिताः, इतनी उदयप्रकृति सिद्धान्त विर्षे कहिए हैं। कौन-कौन ? ज्ञानावरणीयकी ५ दर्शनावरणीयकी : वेदनीयको २ मोहनीयकी २८ आयुकी ४ नामकी ६७ गोत्रकी २ अन्तरायकी ५ ये एक सौ वाबीस उदयप्रकृति जाननी । भावार्थ-जितनी बन्ध प्रकृति कही पूर्व गाथामें, तितनी ही उदयप्रकृति जाननी । पर विशेष इतनी-वहां २६ प्रकृति मोहकी ग्रही, इहाँ अट्ठाईस । जातें दर्शनमोहकी प्रकृति ३ उदयकालविर्षे जुदी-जुदी उदय होय है । तिसतें उदयप्रकृति १२२ जाननी। . आगे भेद-अभेद विवक्षाकरि बन्धप्रकृति उदयप्रकृति कितनी हैं यह कहै हैं भेदे छादालसयं इदरे बन्धे हवंति वीससयं । भेदे सव्वे उदये वावीससयं अभेदम्हि ॥१०७॥ भेदे बन्धे षट्चत्वारिंशच्छतं प्रकृतयः भवन्ति, भेद बन्धविर्षे १४६ प्रकृति होय हैं। भेदे उदये सर्वाः, भेद-उदयविर्षे १४८ प्रक्रति होय हैं। अभेदोदये द्वाविंशत्युत्तरशतम, अभेदो दयविर्षे १२२ प्रकृति होय हैं। [अभेदे बन्धे विंशत्युत्तरशतं प्रकृतयः भवन्ति ] अभेदबन्धमें एक सौ बीस प्रकृति होय हैं। भावार्थ-बन्धन ५ संघात ५ वर्णचतुष्ककी १६ इन संयुक्त १४६ बन्धप्रकृति जाननी । भेदविवक्षाकरि मिश्रमिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृतिमिथ्यात्व इन विना। इहां कोई प्रश्न करै है कै भेदविवक्षाकरि १४६ बन्धप्रकृति कही, १४८ किस वास्ते न कही ? मिश्रमिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृतिमिथ्यात्व इन संयुक्त ? ताको उत्तर के दर्शनमोहके बन्ध होते अकेला मिथ्यात्व ही बंधे हैं। 'जंतेण कोदवं वा' इस गाथाके न्यायकरि । उदयकालविर्षे तीन प्रकार होय है तातें भेदकरि १४६ बन्धप्रकृति कहीं। बन्धन ५ संघात ५ वर्णचतुष्ककी १६ इनको बन्ध भो होय है, उदय भी होय है, बन्धन-संघात बन्ध उदय शरीरनामकर्मके साथि हो है। स्पर्श रस गन्ध वर्ण इन चारके गहेते वे सोलह आवे हैं, तातें अभेदबन्धमें १२० कही, भेदबन्धमें १४६ कही। मिश्रमिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृतिमिथ्यात्व ए जु दोनों बन्धमें नाहीं, तातें इन विर्षे भेद-अभेदविवक्षा नाहीं । बन्धन-संघात १० वर्णचतुष्ककी १६ इनमें भेदविवक्षा जाननी । ___ आगें आगिली गाथामें सत्ताप्रकृति कितनी यह कहै हैं पंच णव दोण्णि अट्ठावीसं चउरो कमेण तेणवदी। दोण्णि य पंच य भणिया एदाओ सत्तपयडीओ ॥१०८।। क्रमेण एताः सत्त्वप्रकृतयः भणिताः, यथाक्रम ए सत्ताप्रकृति सर्वज्ञदेवने कही हैं। ते कौन कौन ? ज्ञानावरणीयकी ५ दर्शनावरणीयकी ९ वेदनीयको २ म नामकी ९३ गोत्रकी २ अन्तरायकी ५ ये एक सौ अडतालीस सत्ताप्रकृति जाननी। जो कर्मको अस्तित्व सो सत्ता जाननी । अस्तित्व सब ही प्रकृतिनिको है तातें १४८ सत्ता प्रकृति कहीं। आगें घातिया कर्मनिविर्षे देशघातियाकी कितनी प्रकृति सर्वघातिया कितनी प्रकृति यह कहै हैं केवलणाणावरणं दसणछक्कं कसायवारसयं । मिच्छं च सव्वघादी सम्मामिच्छं अबंधम्मि ॥१०६॥ ___एताः प्रकृतयः सर्वघातिन्यः, इतनी प्रकृति सर्वघातिया कहिए। से कौन-कौन ? केवलज्ञानावरण १ एक, केवलदर्शनावरण १ निद्रादि पंच ५, बहुरि अनन्तानुबन्धी चतुष्क ४, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198