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कर्मप्रकृति
भावार्थ - जिस जीवके प्रचलाको उदय है सो कछू आंखि खोले सोवै, जो कोई बात करै तिसे हू जानै, अरु थोड़ा सोवै बारंबार ।
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इहां कोई पूछे --दर्शनावरणीयकर्म तो सो कहावै जो दर्शनको आच्छादै । निद्राकर्म दर्शनावरणीयमें गिण्या सु किस वास्ते ? ताको उत्तर - कै जब पांचोंको उदय है तब दर्शन गुण आवरण हो है, तिस वास्ते दर्शनावरणीय में गिण्या |
अथ आधी गाथामें वेदनीयकर्मको स्वरूप कहे हैं, आधी गाथामें मोहनीय कर्मको स्वरूप कहे हैं
दुविहं खु वेयणीयं सादमसादं च वेयणीयमिदि । पुण दुवियष्पं मोहं दंसण चारित्तमोहमिदि ॥ ५२॥
द्विविधं खलु वेदनीयम् दोय प्रकार वेदनीयकर्म जानना । सातं असातं वेदनीयमिति सातावेदनीय और असातावेदनीय । पुनः द्विविकल्पं मोहनीयम् - दर्शनमोहनीयं चारित्रमोहनीयमिति । बहुरि दोय प्रकार मोहनीयकर्म जानना - दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय इस भेदरि । तिनमें दर्शनमोहनीय तीन प्रकार है अरु चारित्रमोहनीय पच्चीस प्रकार है । अथ त्रिप्रकार दर्शनमोहके स्वरूपको कहें हैं
बंधादेगं मिच्छं उदयं सत्तं पहुच तिविहं खु ।
दंसणमोहं मिच्छं मिस्सं सम्मत्तमिदि-जाणे || ५३ ||
बन्धादेकं मिथ्यात्वम् बन्धकी अपेक्षातें दर्शनमोह अकेला मिध्यात्वस्वरूप होई । उदयं सत्त्वं प्रतीत्य त्रिविधं खु, उदय अरु सत्ताको प्रतीति करि तीन प्रकार है निश्चय करि । तद्दर्शनमोहंं मिथ्यात्वं मिश्रं सम्यक्त्वं इति त्रिविधं जानीहि । सो दर्शनमोह मिथ्यात्व १ मिश्र २ सम्यक्त्व ३ इन भेदकरि तीन प्रकार जानहु |
भावार्थ- - जब दर्शनमोह बंधे, तब एक मिथ्यात्वरूप होय बंधे है। जब उदय हो है. तब तीन प्रकार होइ परिणमै है । अरु सत्ताकी अपेक्षा तीन प्रकार है । जिस कर्मके उदय वीतराग-प्रणीत मार्ग विमुद्दे, अरु सप्त तन्त्रको श्रद्धा नहीं करे है, अरु हिताहित विचारने को असमर्थ है सो मिथ्यात्व कहिए । अरु जिसके उदय मिथ्यात्व अरु सम्यक्त्वरूप परिणाम समकाल वेदै सो मिश्रमिथ्यात्व कहिए। जिसके उदय वीतराग-प्रणीत तत्त्वको तो यथावत् श्रद्धा करे, परन्तु कछू भेद राखे कै पार्श्वनाथकी पूजातें संकट टलें हैं, शान्तिनाथ की पूजा तें शान्ति हो है; इस जातिका कहुं कहुं भेद राखै तिसका नाम सम्यक्त्व प्रकृति मिध्यात्व कहिए है।
अथ दृष्टान्त कहिए है
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जंतेण कोवं वा पढमुवसम सम्मभावजंतेण ।
मिच्छादव्वं तु तिहा असंखगुणहीणदव्वकमा || ५४ ॥
यन्त्रेण कोद्रवं वा जैसे चाकी करि कोदों दल्या संता तीनि प्रकार हो है, तथा प्रथमोपशमसम्यक्त्वभावयन्त्रेण मिध्यात्वद्रव्यं त्रिधा भवति तैसे ही प्रथम उपशमसम्यक्त्वरूप जु है भाव सोई भया यंत्र तिसकरि मिध्यात्वद्रव्य तीन प्रकार है । भावार्थ- - जब प्रथम उपशमसम्यक्त्व हो है तब मिध्यात्वद्रव्य तीन प्रकाररूप होय परिणमै है - मिध्यात्व १ मिश्र मिथ्यात्व २
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