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कर्म प्रकृति
स्पर्शनाम अष्टविकल्पम् पहिली गाथामें कह्या जु स्पर्श सो आठ प्रकार है । आगे आनुपूर्वी कहिए है –नारकानुपूर्वी तिर्यंचानुपूर्वी नरानुपूर्वी देवानुपूर्वी इति चतस्रः आनुपूर्व्यः भवन्ति । भावार्थ - जिस कर्मके उदद्यतें जिस गतिविषे जानेवाला जीव होय, तिस गतिविषे ले जाहि सो आनुपूर्वी नाम कहिए ।
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एदा चउदस पिंडा पयडीओ वण्णिदा समासेण ।
तो अपिंडपडी अडवीसं वण्णइस्सामि ॥६४॥
एता: चतुर्दश पिण्डप्रकृतयः समासेन वर्णिताः । ए चउदह पिंडप्रकृति संक्षेपता कहीं । अतः अष्टाविंशतिः अपिण्डप्रकृतीः वर्णयिष्यामि । भावार्थ - चउदह प्रकृति के कहे अनन्तर अट्ठाईस प्रकार अपिंडप्रकृति आगे हम नेमिचन्द्र कहेंगे ।
अगुरुलहुग उवघादं परघादं च जाण उस्सासं । आदावं उज्जीवं छप्ययडी अगुरुछकमिदि || ६५ ॥
अगुरुलघुकं उपघातं परघातं च उच्छ्वासं आतपं उद्योतं एताः षट् प्रकृतयः अगुरुषट्कं इति जानीहि । भावार्थ - जिस कर्मके उदय लोहके पिंडकी नाईं न तो तले ही गिरे, और. अर्क तूलकी नाई ऊपरको जाय नाहीं सो अगुरुलघु नामकर्म कहिए । जिस कर्म के उदय आत्मघातको करे ऐसे बड़े सींग, बड़े स्तन, भारी उदर इत्यादि दुःखदाई अंग होहि सो उपघातकर्म कहिए । जिस कर्मके उदय और जीवको घात करे, ऐसे श्रृंग नख डाढ इत्यादि अंग होहि, सो परघात नामकर्म कहिए । जिस कर्मके उदय उच्छ्वास होय, तो उच्छ्वास नामकर्म कहिए । आतप अरु उद्योत इन दोनोंका अर्थ आगिली गाथामें कहेगा । इन छह प्रकृतिको नाम अगुरुषट्क जानना सिद्धान्तविषे ।
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मूलुहपहा अग्गी आदावो होदि उन्हसहियपहा । आइच्चे तेरिच्छे उण्हूणपहा हु उज्जोवो ||६६ ॥
मूलोष्णप्रभः अग्निः मूल उष्ण होत संते प्रभा उष्ण है जिसकी सो अग्नि कहिए । भावार्थ - मूल जिस विषे उष्णता है, अरु प्रकाश करे है, सो तो अग्नि कहिए । उष्णसहितप्रभः आतपः भवति, उष्णतासहित है प्रभा जिसकी सो आतप है । भावार्थ-जाको मूल तो उष्णन होय, पर प्रभा गरम होय सो आतप कहिए। स आदित्यादिषु भवति, सो आतपनामकर्मको उदय सूर्यके बिम्बविषे है । भावार्थ - जिस कर्मका उदय मूल [ शीतल ] सो आतपनामकर्म सूर्यके विम्बमें जो एकेन्द्रिय पर्याप्त पृथ्वीकाय तिर्यंच हैं, तिनबिपें उदयरूप पाइए है। जातें सूर्यबिम्ब मूलतें उष्ण नहीं, उष्णप्रभासंयुक्त है । इहाँ कोई प्रश्न करे है कै आतपनामकर्मके उदय तो सूर्य बिम्बविषें कह्यो तुमने, अग्निविषे उष्णता अरु प्रकाश यह किस कर्मके उदय है ? ताको उत्तर - कै थावरनामकर्म जु है सो पंच प्रकार है पृथ्वीकायादिभेदकारे । तिनमें अग्निकाय नामकर्म है, तिस कर्मके उदयकरि अग्निविषे उष्णता अरु प्रकाश है । उष्णरहितप्रभ उद्योतः उष्णतारहित प्रभा जिसकी सो उद्योत कहिए । भावार्थ - जिसकर्मके उदय गरमरहित प्रभा होय, सो उद्योतनाम प्रकृति कहिए । सो उद्योत चन्द्रविम्बके पृथ्वी काय एकेन्द्रिय तियंचनिविपें पाइए, अरु जुगणूविषे पाइए ।
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