Book Title: Karmprakruti
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 165
________________ १३० कर्मप्रकृति बहुरि फाटक विना पाँच संहननवाले जीव पंचमे नरकताई जाहि । फाटक-कीलक विना चार संहननवाले जीव छठे नरकताई जाहि । पंचसंहननबिना वनवृषभनाराचवालो जीव सातवें नरकताई जाहि । । घम्मा वंसा मेघा अंजण रिट्ठा तहेव अणिवज्झा । छट्ठी मघवी पुढवी सत्तमिया माधवी णाम ॥८६॥ घर्मा वंशा मेघा अञ्जना अरिष्टा तथैव अणिवज्झा अनुवन्ध्या षष्ठी मघवी पृथ्वी सप्तमी माघवी नाम । पहले नरकको नाम घर्मा, दूसरे नरकको नाम वंशा, तीसरे नरकको नाम मेघा, चौथेको नाम अंजना, पंचमी अरिष्ठा तैसे ही अनादि कालतें लेकरि रूढ़ि नाम छठी नरकपृथ्वीका नाम मघवी कहिए, सातवीं पृथ्वीको नाम माधवी कहिए। . भावार्थ-नाम जु है सु दोय प्रकार होय-एक तो नाम सार्थक है, दूसरो रूढ़ नाम है । तिसतें इन सातहु नरकको नाम रूढ़ कहै है । जो कोई पूछ कै घर्मा नाम पहले नरकका काहेतें कहा ? ताको उत्तर-कै रूढ नाम है इनको अर्थ नरकहुको नाही मिले है। ए ऐसे ही अनादिकालतें रूढ़ि नाम सिद्धान्त विर्षे कहे हैं। मिच्छापुव्वदुगादिसु संग-चदु-पणठाणगेसु णियमेण । पढमादियाइ छत्तिगि ओपेण विसेसदो णेया ॥८॥ मिथ्यात्वापूर्वद्विकादिषु सप्त-चतुः-पञ्चस्थानेषु मिथ्यात्व आदिक सात गुणस्थानविर्षे अरु अपूर्वकरणकी दोय श्रेणी तिनविर्षे उपशमश्रेणीके चार गुणस्थानवि क्षपकश्रेणीके पंच गुणस्थानविषे, नियमेन प्रथमादिकाः षट्येकाः संहननाः भवन्ति, निश्चय करि अरु क्रमतें . प्रथमादिक संहनन छह तीन एक होहि । ओघेन विशेषतश्च ज्ञेया, सामान्यताकरि अरु विशेषता करि । इस भाँति गुणस्थानविर्षे छहों संहनन जानने । भावार्थ-पहले गुणस्थानतें लेकरि सातवें गुणस्थानताईं छहों संहनन पाइए । अपूर्वकरणविर्षे अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसाम्पराय उपशान्तकषाय इन विर्षे वनवृषभनाराच, वननाराच, नाराच ये तीन संहनन पाइए। क्षपकश्रेणीमें पंच गुणस्थान-अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसाम्पराय क्षीणकषाय सयोगिकेवली इनविर्षे एक वज्रवृषभनाराच ही संहनन पाइए । इस भांति सामान्यता करि कहे, विशेषकरि जानने। . ए छह संहनन कहां कहां पाइए यह कहै हैं वियलचउक्के छ8 पढमं तु असंखआउजीवेसु । चउत्थे पंचम छ? कमसो विय छत्तिगेकसंहडणी ॥८॥ विकलचतुष्के षष्ठम् , द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय असेनी पंचेन्द्रिय इस विकलचतुष्कविर्षे स्फाटक संहनन होय । प्रथमं तु असंख्येयायुर्जीवितेषु पहलो जु है वज्रवृषभनाराचसंहनन सो जिन जीवहुकी असंख्यात वरसकी आयु है। भावार्थ-भोगभूमियां कुभोगभूमियां मनुष्य-तिर्यंच अरु मानुषोत्तर पर्वततें आगे नागेन्द्रपर्वतपर्यन्त असंख्यातद्वीपनिविर्षे जे तिथंच तिनकी असंख्यात वर्षनिकी आयु है तिसतें इनके वज्रवृषभनाराच प्रथम संहनन होई । चतुर्थ-पञ्चम-षष्ठेषु षट्-त्र्येकसंहननानि भवन्ति, चतुर्थकालविर्षे छहों संहनन होय । पंचमकालविर्षे अर्धनाराच कीलक स्फाटक ए तीन्यों संहनन होय । छठे कालविर्षे स्फाटिक ही एक संहनन होय । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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