Book Title: Karmprakruti
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 160
________________ प्रकृतिसमुत्कीर्तन १२५ तैजस-कार्मणाभ्यां त्रये संयोगे कृते सति चतस्रः चतस्रः प्रकृतयः, औदारिक वैक्रियिक आहारक इन तीन शरीरविषं तैजस-कार्मणकरि संयोग किये संते चार-चार प्रकृति होय हैं। भावार्थ-औदारिक वैक्रियिक आहारक इन शरीरनिको तैजस-कार्मणसों लगाइए तो बारह शरीरके भेद होइ हैं-औदारिक-औदारिक १ औदारिक-तैजस २ औदारिक-कार्मण ३ औदारिक-तैजस-कार्मण ४ । वैक्रियिक-वैक्रियिक १ । वैक्रियिक तैजस २ । वैक्रियिक-कार्मण ३ वैक्रियिक-तैजस-कामेण ४ । आहारक-आहारक १ । आहारक-तैजस २ । आहारक-कार्मण ३ । आहारक-तैजस-कार्मण ४।। तैजस कार्मणेन संयोगे कृते सति द्वे प्रकृती। तैजस कार्मणके साथ संयोग करनेपर दोय प्रकृति होय हैं -तैजस-तैजस १ । तैजस-कार्मण २ । कार्मणेन संयोगे कृते सति एका प्रकृतिः कार्मण-कार्मण १। एवं शरीरस्य पञ्चदश भेदा भवन्ति । इस प्रकार शरीरनिके पंचदश भेद जानहु । औदारिक-औदारिक, वैक्रियिक-वैक्रियिक, आहारक-आहारक, तैजस-तैजस, कार्मण-कार्मण इन पंच भेदनिको छांडि दश भेद तिरानवै प्रकृतिमें मिलाइए तो एक सौ तीन भेद होय । जातें तिरानवे प्रकृति में औदारिकादि पुनरुक्त ते न गिण्या, यातें एक सौ तीन नामकर्मके भेद जानने । भावार्थ-जो चक्रवर्ती भोग-निमित्त और औदारिकशरीरको करै सो औदारिकऔदारिकशरीर कहिए १। औदारिकशरीर-संयुक्त मुनि जब तैजस पुतला निकासे तहाँ औदरिक तैजस कहिए २ । जब मरण-समय आत्मप्रदेश निकासे और गति स्पर्शनेको अपने औदारिकशरीरके ग्रहे संते तब औदारिक-कार्मण कहिए ३ । औदारिक-संयुक्त मुनिके तैजसशरीरको निकासनेको अपर शरीर साथ ही कार्मण शरीर जब निकसै, तहाँ औदारिक-तैजसकार्मण कहिए ४ । देव-नारकीके अपने वैक्रियिकशरीरतें और विकुर्वणा जु करे क्रीड़ानिमित्त, शत्रमारण-निमित्त सो वैक्रियिक-वैक्रियिक कहिए ५। देव वा नारकी बहत क्रोधके वशतें तैजसरूप आत्म-प्रदेशनिको बाहिरै निकासे, तहां वैक्रियिक-तैजस कहिए ६ । देव वा नारकी मरण-समय और गति स्पर्शनेको आत्म-प्रदेश निकासे अपने वैक्रियिकशरीरको ग्रहे संते, तहां वैक्रियिक-कार्मण कहिए ७ । देव वा नारको बहुत क्रोध-वशतें जब तैजसरूप आत्मप्रदेश कार्मणरूप आत्म-प्रदेशसंयुक्त निकसै, तहां वैक्रियिक-तैजस-कार्मण कहिए ८ । मुनीश्वरको पदार्थ-सन्देह दूर करण-निमित्त जु आहारक पुतला निकसै है सो जहां जाय, तहां जो केवली न पावे, तब ओही आहारक और आहारकपुतलाको निकासे केवलीके दर्शनको; तहां आहारक-आहारक कहिए । संदेह दूर करण-निमित्त निकस्यो जु आहारक सु मार्गमें उपसर्गवन्त मुनिको देखिके तिसके सुखीकरण-निमित्त शुभतै जस कर; तहां आहारक-तैजस कहिए १० । जहां मुनिके आहारकरूप आत्माके प्रदेश साथि कामणरूप प्रदेशनिकसें, तहाँ आहारक-कार्मण कहिए ११ । जहां मुनिके शरीरतें निकसो जु आहारक सु किस ही एकको दुखी देखिके तिसके सुखीकरण-निमित्त तैजस करे तिस तैजसके साथ ही कार्मणरूप आत्म-प्रदेश निकसे, तहां आहारकतैजस-कार्मण कहिए १२। शत्रु मित्र न पावे तब ही तैजस और तैजस करे तहां तैजस-तैजस कहिए १३ । मुनिशरीरतें निकसे जु कार्मणप्रदेश संयुक्त आहारक तैजस रतें आहारकतें और आहारक तैजसते और तैजस जब करे तहां तैजस-कामण कहिए १४। अरु कामेण कहिए.............."| एवं पंचदस प्रकार शरीरनिके भेद जानने । आगे पंचबन्धन कहे हैं पंच य सरीर बंधणणामं ओराल तह य वेउव्वं । आहार तेज कम्मण सरीरबंधण सुणाममिदि ॥७॥ शरी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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