Book Title: Karmprakruti
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 156
________________ प्रकृतिसमुत्कीर्तन १२१ सम्यक्त्वमिथ्यात्व ३ इन तीन रूप होय परिणमै है। कीदृशं त्रयम् ? असंख्यातगुणहीनद्रव्यक्रमात् । असंख्यातगणहीन है द्रव्यकर्म जिनके । भावार्थ-मिथ्यात्व द्रव्यतें असंख्यात. गुणहीन मिश्रमिथ्यात्व है, मिश्रतें असंख्यातगुणहीन सम्यक्त्वमिथ्यात्व जानना । इस भाँति इन तीन्योंमें परस्पर भेद है। अथ चारित्र मोहनीयको स्वरूप कहै हैं दुविधं चरित्तमोहं कसायवेयणीय णोकसायमिदि । ' पढमं सोलवियप्पं विदियं णवमेयमुद्दिढ ॥५५॥ द्विविधं चारित्रमोहं दोय प्रकार चारित्रमोह जानना। कषायवेदनीयं नोकषायवेदनीयम् एक कषायवेदनीय अरु दूजा नोकषायवेदनीय । जिस मोहकर्मके उदय सोलह कषाय वेदिए सो कषायवेदनीय कहिए । अरु जिसके उदय नोकषाय वेदइ सो नोकषायवेदनीय कहिए । प्रथमं पोडशविकल्पम् चारित्रमोहनोय सोलह प्रकार है । द्वितीयं नवभेदमुद्दिष्टम् दूसरी जु है नोकपायवेदनीय सो नव प्रकार है। अथ सोलह प्रकार कहिए है अणमप्पच्चक्खाणं पचक्खाणं तहेव संजलणं । कोहो माणो माया लोहो सोलस कसायेदे ॥५६।। अनन्तानुबन्धी क्रोध अनन्तानुबन्धी मान अनन्तानुबन्धी माया अनन्तानुबन्धी लोभ तथैव अप्रत्याख्यान क्रोधमानमायालोभाश्चत्वारः । तथैव प्रत्याख्यानक्रोधमानमायालोभाश् चत्वारः। तथैव संचलनचतुष्क जानना । इस ही भांति सोलह प्रकार जानना। आगे चार प्रकार क्रोधके स्वरूपको कहै हैं सिल-पुढविभेद-धूली-जलराइसमाणओ हबे कोहो । णारयतिरियणरामरगईसु उप्पायओ कमसो ॥५७।। शिला-पृथ्वीभेद-धूलि-जलराजिसमानः क्रोधः शिलाभेद भूमिभेद धूलिरेखा जलरेखा समान जु क्रोध सो क्रमशः नारकतियकनरामरगतिषु उत्पादको भवति । भावार्थ-पाषाणरेखासमान उत्कृष्टशक्तिसंयुक्त अनन्तानुबन्धी क्रोध जीवको नरकविर्षे उपजावै है । हलकरि कुवा जु है भूमिभेद तिस समान मध्यम शक्तिसंयुक्त अप्रत्याख्यान क्रोध तिर्यंचगतिको उपजावै है। धूलिरेखासमान अजघन्य शक्तिसंयुक्त प्रत्याख्यान क्रोध जीवको मनुष्यगति उपजावै है। जलरेखासमान जघन्य शक्तिसंयुक्त संज्वलन क्रोध देवगतिविष उपजावै है। अथ मानके स्वरूपको कहै हैं सिल-अद्वि-कट्ठ-वेत्ते णियभेएणणुहरंतओ माणो। णारयतिरियणरामरगईसु उपायओ कमसो॥५८।। शिलास्थिकाष्ठवेत्रसमानिकभेदैः अनुहरन् मानः पाषाणस्तम्भ अस्थिस्तम्भ काष्ठस्तम्भ वेत्रस्तम्भ इन समान जु है अपने भेद तिनहु करि उपमीयमान जु है अपने भेद सो जीव'. नारकतिर्यङ्नरामरगतिषु उत्पादयति । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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