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कर्मप्रकृति ___ अथ उत्तरप्रकृतिहुका ठीक कहै हैं
पंच णव दोणि अट्ठावीसं चउरो कमेण तेणवदी ।
ते उत्तरं सयं वा दुग पणगं उत्तरा होति ॥३६॥ ज्ञानावरणीयकी ५ दर्शनावरणीयकी ६ वेदनीयकी २ मोहनीयकी २८ आयुकी ४ नामकी ६३ वै हैं अरु एकसौ तीन १०३ भी जाननी । गोत्रकी २ अन्तरायकी ५ इतनी सब उत्तरप्रकृति हैं आठ कर्महुकी।
अथ पांच प्रकार ज्ञानावरणीयके कहनेके वास्ते प्रथम ही पंच प्रकार ज्ञानके स्वरूपको आचार्य कहे हैं । जाते पंच प्रकार ज्ञानके कहे बिना ज्ञानावरणीयका स्वरूप नाहीं जाना जाय है तातें ताहि कहिए है
अहिमुहणियमियबोहणमाभिणियोहियमणिदि-इंदियजं ।
बहुआदि-ओग्गहादिय-कयछत्तीसतिसयभेयं ॥३७॥ अभिमुखनियमितबोधनं आभिनिबोधकं भवति, जो पदार्थ स्थूल है अरु वर्तमान है अरु इन्द्रियग्रहणयोग्य प्रदेशविर्षे प्रवत्त है सो पदार्थ अभिमुख कहिए। अरु जो पदार्थ निश्चित है इस इन्द्रियग्रहणयोग्य यह है इस भांति ठीक किया है जो पदार्थ तिसका नाम नियमित कहिए । इस अभिमुख अरु नियमित पदार्थका जाननेवाला तिसका नाम आभिनिबोधक मतिज्ञान कहिए है। यह मतिज्ञान स्थूल वर्तमान योग्य प्रदेशविर्षे स्थित निश्चित पदार्थको जानै है जातें यह मतिज्ञान अनिन्द्रियेन्द्रियजं अनिन्द्रिय कहिए मन अरु पंच स्पर्शनादि इन्द्रिय तिनकरि उत्पन्न है पदार्थ स्पर्शनादि इन्द्रियहुकरि स्थूल पदार्थ जानिए है। परन्तु स्थूल पदार्थ भी तब जानिए है जो वर्तमान होइ है । यो नाहीं कि भूत भविष्यत्कालके स्थूलपदार्थ प्रत्यक्ष जानिए है । अरु स्थूल वर्तमान भी पदार्थ तब जानिए है जो इन्द्रियग्रहण योग्य स्थूलविषै होहि । यो नाही कि स्थूल वर्तमान मेरु पर्वतादिक दूर तिष्ठहि है यो पदार्थ अरु पटलहुकरि आच्छादित नरक पदाथ ते प्रत्यक्ष जानिए है। अरु स्थूल वर्तमान इन्द्रियग्रहणयोग्य स्थूलविर्षे भी तब पदार्थ जानै जाइ है जो पदार्थ निश्चित हो है कि इस इन्द्रियके ग्रहणको योग्य यह अर्थ है । यो नाहीं कि श्रवण इन्द्रिय ग्रहणयोग्य शब्दको नेत्र इन्द्रिय ग्रहै है, अरु जिहा इन्द्रिय ग्रहणयोग्य रसको श्रवण ग्रह है। जो जिस इन्दिय ग्रहणयोग्य पदार्थ होड तिस ही इन्द्रियकरि अहिए तो स्पर्शनादि इन्द्रियहुकरि पदार्थ जाने जाय हैं। तातें यह सिद्धान्त सिद्ध हुआ कै इन्द्रियाधीन मतिज्ञान है । बहुरि मतिज्ञान कैसा है ? बह्वादि-अवग्रहादिककृत षट्त्रिंशत्रिशतभेदम् बहुआदिक बारह १२ जु भेद अरु अवग्रहादि चार ४ तिनकरि किए है तीन सै छत्तीस भेद जिसके।
भावार्थ-इस मतिज्ञानके तीन सै छत्तीस भेद हैं, ते समस्त प्रगट आगे कहिए हैअवग्रह १ ईहा २ अवाय ३ धारणा ४ । अवग्रह कहा कहिए ? पदार्थ अरु इन्द्रिय इन दोनों के संयोग हुए संते पदार्थ-दर्शन हो है। तिसके पीछे जो पदार्थको कछूक ग्रहण तिसको नाम अवग्रह कहिए । जैसे-दूरतें नेत्रकरि ग्रहिएके यह जु कछु पदार्थ देखिए है सो श्वेत है ऐसा जु ग्रहण सो अवग्रह है। ईहा कहा कहिए ? जो पदार्थ अवग्रहकरि जान्यो है तिसकी जु विशेष जानिवेकी इच्छा सो ईहा कहिए। जैसे यह श्वेतरूप कहा है ? वकहुकी पंकति है कि धुजा है ऐसा जो ग्रहण सो ईहा । अवाय कहा कहिए ? जो पदार्थको यथावत् स्वरूप विशेषकरि जानना तिसका नाम अवाय कहिए । कै यह वकपंक्ति ही है, पताका नाहीं।
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