Book Title: Karmprakruti
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 141
________________ कमप्रकृति यत्तु दुःखरूपं तद् असातं निम्बादिवच्चतुर्भदम् । सुख-दुःखे वेदयतीति वेदनीयम् । जो सुखदुःखहु को जुवलि करि भुक्तावै है, सो वेदनीयकर्म कहिए । भावार्थ-यह वेदनीयकर्म साता असाताके भेद करि दोय प्रकार है, सो आपणो विपाक अवस्थाविर्षे जीवको इन्द्रियद्वार करि बहुत बलकरि सुख-दुःखको देहै। अथ सामान्यता करि जीवके दर्शनादि गुण कहै हैं अत्थं देक्खिय जाणदि पच्छा सद्दहदि सत्तभंगीहि । इदि दंसणं च णाणं सम्मत्तं हुंति जीवगुणा ॥१५॥ अयं संसारी जीवः अर्थ दृष्ट्वा जानाति । यह जो है संसारी जीव प्रथम ही पदार्थको देखै है, पाछै जाणे है कि यह अमुको पदार्थ है, अरु उसके गुणहुको जानै है। पश्चात् सप्तभङ्गीभिः श्रद्दधाति । पाछै सप्तभंगी वाणी करि उस पदार्थकी श्रद्धा करै है । इति कृत्वा दर्शनं ज्ञानं सम्यक्त्वं च जीवगुणा भवन्ति । इस करि यह जानिए है कि अर्थका देखना तौ दर्शनगुण करि है, जानना ज्ञानगुणेन (ज्ञानगुणकरि )। इसतै ए तीनौ जीवपदार्थके गुण है । अथ सप्तभंगी वाणीके नाम कहै हैं सिय अत्थि णत्थि उभयं अव्वत्तव्यं पुणो वि तत्तिदयं । ' दव्वं खु सत्तभंगं आदेसवसेण संभवदि ॥१६॥ खु द्रव्यं सप्तभङ्ग सम्भवति खु स्फुटम् , प्रगट द्रव्य जु है सो सप्तमङ्गम् --सप्त है भंग प्रकार जा विपैं ऐसा है । काहे करि ? आदेशवशेन आदेश जुहै पूर्वाचार्यनिका कथन ताके वशकरि जु द्रव्य है सो वचन-विलासकरि सात प्रकार साधिए है । जाते सात प्रकार साधनतै, द्रव्यका यथार्थ ज्ञान होइ है। ते सप्तभंग कौन हैं ? स्यादति नासि उभय अवक्तव्यं पुनरपि तस्त्रितयम् । स्यात् शब्द सात ही जागै लगाइ लेना। स्यात् अस्ति १ स्यात् नास्ति २ स्यादस्तिनास्ति ३ स्यादवक्तव्यम ४ पुनरपि तस्त्रितयम। बहरि तेई पूर्वोक्त तीनौ अवक्तव्य संयक्त जानने । स्यादस्ति-अवक्तव्यं ५ स्यान्नास्ति-अवक्तव्यं ६ स्यादस्ति नास्ति-अवक्तव्यम् । ए सप्त भंग जानने । आगे इन सप्त भंगनिकरि द्रव्यका स्वरूप साधिए है-स्यादस्ति-स्यात् कहिए कथंचित् प्रकार अपने द्रव्य क्षेत्र काल भावकरि अस्ति द्रव्य है जो वस्तु सो तौ द्रव्य कहिए । जो द्रव्य-अवगाहना सो क्षेत्र २ । जो द्रव्य-पर्यायकी कालमर्यादा सो काल ३ । जो द्रव्यका स्वरूप सो भाव ४। जो द्रव्य है सो अपने स्वरूपको इक चतुष्टयकरि धारै है, ता” स्वचतुष्टयकी अपेक्षा द्रव्यका अस्तित्व कह्या । जैसे स्वचतुष्टयकरि घटका अस्तित्व है १। स्यात् नास्तिकथंचित प्रकार पर-चतुष्टयकी अपेक्षा नास्ति द्रव्य नाहीं। जैसे पट-चतपयकरि घट नाहीं। जो पटस्वरूपकरि घट नास्ति घट न होइ, तो घट-पट एक ही वस्तु होइ । सो प्रत्यक्ष प्रमाणतें यो तौ नाहीं । तातें पर-स्वरूपकरि जु द्रव्यविपै नास्ति स्वभाव है सो परतें द्रव्य के भिन्नस्वरूपको साधै है। यातें कथंचित प्रकार द्रव्य नास्ति कह्या २। स्यादस्ति-नास्ति-स्यात् काह एक प्रकार अपने परके चतुष्टयकी अपेक्षाकरि 'अस्तिनास्ति' द्रव्य है, नाहीं, ऐसा कहिए । यद्यपि द्रव्य एक ही काल अस्तिनास्ति है, तथापि जब वचनकरि अस्तिनास्ति ऐसा कहिए, तब क्रमसों कह्या जाइ है । जाते वचन-उच्चार क्रमते, एक काल नाहीं। यात कथंचित् प्रकार द्रव्य अस्ति नास्ति कह्या ३। स्यादवक्तव्यम- स्यात् कथंचित् प्रकार एक ही बार द्रव्य अस्तिनास्ति ऐसा अवक्तव्य कह्या जात नाहीं। जब द्रव्यकों अस्तिनास्ति ऐसा कहिए तब जिस काल अरित कहिए तब नास्ति उच्चार नाहीं। यात वचन-विलास करि वस्तु-स्वरूप सिद्ध नाहों, वस्तु एक ही काल अस्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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