Book Title: Karmprakruti
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 139
________________ १०४ कर्मप्रकृति ज्ञानावरणी १ दर्शनावरणी २ वेदनी ३ मोहनी ४ आयु ५ नाम ६ गोत्र ७ अन्तराय अष्ट मूलप्रकृति जानवी। आगे इन मूल प्रकृतिहूमेंके कै घातिया के अघातिया हैं ते कहैं हैं- . आवरण मोहविग्धं घादी जीवगुणघादणत्तादो । आउगं णामं गोदं वेदणीयं तह अधादि त्ति ॥६॥ आवरण-मोह-विघ्नानि घातिकर्माणि भवन्ति । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, अन्तराय ए चारि कर्म घातिया जानने । काहे ते ? जीवगुणघातनत्वात् । जातें ए चारि कर्म जीवके गुणहूको घाते हैं, तातें घातिया कहिए है। तथा आयुर्नाम गोत्रं वेदनीयं अघातिकर्माणि भवन्ति । तैसे ही आयु नाम गोत्र वेदनी ए चारि प्रकृति अघातिया हैं । __ इहां कोई वितर्क करै है-जीवगुणहूको तो आठों कर्म घाते है, इनमें चारि घातिया ऐसा भेद क्यों करो हो ? ताको उत्तर-कै जीवके अनन्तहूमें चारि गुण प्रधान हैं, अनन्तज्ञान अनन्तदर्शन अनन्तसुख अनन्त वीर्य इन चारिह गणह को जिसने आदिके वे चारि कर्म आच्छादै हैं, तिसते घातिया कहिए हैं । प्रधान गुणके घातनेंते, जातें ए चारि गुण आत्मांके स्वरूपको प्रगट करि दिखावे हैं, तातें ए चारि गुण प्रधान हैं। अरु आयु नाम गोत्र वेदनी ए चारि कम वैसे प्रधानहूको नहीं आच्छादै हैं तातें अघातिया कहिए, जातें अनन्त चतुष्टयविराजमान शुद्ध सर्वज्ञ केवलीविषै ए चारि कर्म जली जेवरीवत् पाइए है, नातें प्रधान गुणहुको नाहीं आच्छादै है। अरु जो प्रधान गुणहुको आच्छादत होते तो केवलज्ञानीके अनन्तचतुष्टय गुण प्रगट न होन देते। इस वास्ते आयु नाम गोत्र वेदनीय ए चारि कम अघातिया कहिए। अथ घातिया कर्महुके अरु क्षयोपशमते जे गुण प्रगट हो हैं ते कहें हैं केवलणाणं दंसणमणंतविरियं च खइयसम्मं च । खइयगुणे मदियादी खओवसमिये य घादी दु॥१०॥ केवलज्ञानं केवलदर्शनं अनन्तवीर्य क्षायिकसम्यक्त्वं च एते क्षायिकगुणाः। केवलज्ञान केवलदर्शन अनन्तवीर्य क्षायिकसम्यक्त्व च शब्दतें क्षायिकचारित्र दानादि चारि इन [ नौ ] क्षायिक भावके घात होए घातियाकर्म। इन चारि घातियाकर्मके क्षयतें केवलज्ञान केवलदर्शन अनन्तवीर्य क्षायिकसम्यक्त्व क्षायिकचारित्र दानादि चारि ए गुण उपजे हैं। ज्ञानावरणकर्मके गयेते अनन्तज्ञान, दर्शनावरणकर्म गये अनन्तदर्शन, अन्तरायके गयेते दानादि पंच [ लब्धियां ] मोहनीके गये क्षायिकसम्यक्त्व क्षायिकचारित्र प्रगट होहि, यह वास्ते ए अनन्तज्ञानादि नव गुण क्षायिक कहै हैं। मत्यादयः क्षायोपशमिकगुणाः । अउर इन घातिकर्महुके क्षयोपशमतें मति आदिक गुण प्रगट होहि । काहे तै ? घातनत्वात् । जातै सर्वाग ही निरावरण नाहीं, घातै भी हैं, तातें क्षयोपशमगुण कहिए । ज्ञानावरणकर्मके क्षयोपशमते मति। श्रुत, अवधि, मनःपर्यय ए गुण प्रगटै हैं। दर्शनावरण-क्षयोपशमतें चक्ष अचक्ष अवधिदर्शन हो है। अन्तरायके क्षयोपशमतें किंचित् पंच दानादि हो है । मोहनीयके क्षयोपशमतें मायिक बिना अष्ट सम्यक्त्व चारित्रादि गुण होहि । ए मति आदिक गुण याही क्षयोपशमरूप हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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