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प्रकृतिसमुत्कीर्त्तन
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भावार्थ :- यहु जीव जब यह बन्ध करें एक समयविषे तब एक ही समय प्रबद्धका बन्ध करै । परन्तु वही समयप्रबद्ध जीवकै प्रदेशहु सेती बंधा सातकर्मरूप परिणमै है । जाते इस जीवकै संसारविषे समय-समय सातकर्म बन्ध-योग्य परिणाम सदा रहै हैं, तातैं सात जातिका बन्ध कर है । जैसे एक अन्न आहारया संतै रस रुधिर मास चर्वी अस्थि मज्जा शुक्र इन सात धातुरूप होइ परिणमै है । जातें पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर में सात धातु परिणमनकी योग्यता है, तातैं परिणमै है । तैसे यह कर्म सात जाति होइ परिणमै है ज्ञानावरणी आदि सप्त आयुकर्म बिना |
पुनः यत् आयुःकर्म तत् भुक्तायुः शेषेण । बहुरि जो आयुकर्मको बन्ध है सो भुज्यमान है आयु तिसके त्रिभागकरिके जानना ।
भावार्थ : – यह जु जितनी जिस जीवके वर्तमान एक पर्यायमिश्रित आयु है ति आयुके तीसरे भागविषे आयुबन्ध जानना । अरु जो तीसरे भागविषे न होइ तो तीसरेके तीसरे भाग में होइ । अरु जो इहाँ भी न होइ तो इसके तीन भाग करिए। इस ही भाँति नव बार तीन-तीन भाग करि अन्त मरणसमय अवश्य आयुबन्ध होइ ।
अथ बन्ध कै प्रकार है सो क है हैं
सो बंधो चउभेओ णायव्वो होदि सुत्तणिद्दिट्ठो ।
पड - ट्ठदि - अणुभाग- परसबंधी पुरा कहिओ ||२६||
चतुर्भेदः बन्धः पुरा कथितः सूत्रनिर्दिष्टः । पूर्व ही जो बन्ध सो चार प्रकार कया । कौन -कौन ? प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध, प्रदेशबन्ध यहु चार प्रकार बन्ध
जानना |
प्रकृतिः परिणामः स्यात् स्थितिः कालावधारणम् । अनुभागो रसो ज्ञेयः प्रदेशो दलसञ्चयः ॥
प्रकृति कहिए स्वभाव परिणाम जिस कर्मका जु स्वभाव सु प्रकृति कहिए । जु ज्ञानका आच्छादनत्व सुज्ञानावरण कर्मका स्वभाव है । दर्शनका आच्छादन सु दर्शना - वरणका स्वभाव है. इस भाँति सब कर्महुका स्वभाव जानना । योगनिकी तीव्रता - मन्दताकरि जुतीत्र-मन्द स्वभाव लिए कर्मका बन्ध सो प्रकृतिबन्ध कहिए । कषायको तीव्र - मन्दताकरि उत्कृष्ट मध्यम जघन्यरूप कालकी मर्यादा लिए बन्ध होइ सु स्थिति कहिए । कषायकी तीव्र-मन्दता अनेक भेद लिए जु अपने रस लिए बन्ध होइ सो अनुभागबन्ध कहिए । योगनिके अनुसारे तीव्र - मन्दता रूप करि तीव्र मन्दरूप होइ आत्माके प्रदेशनिसों एकमेक होइ जु जु कर्म ही की पुंज बंधे सो प्रदेशबन्ध कहिए। एक-एक बन्धके असंख्याते - असंख्याते भेद हैं तीव्र-मन्दताकरि, जातें कषाय योगनिका भी असंख्यात जातिका परिणमन है ।
अथ इन आठ कर्महुका दृष्टान्त है
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पडपडिहारसि मज्जाहडिचित्तकुलालभंडयारीणं ।
जह एदेसिं भावा तह विह कम्मा मुणेयव्त्रा ||२७||
यथा पट - प्रतीहार-असि-मद्य-हलि - [ चित्रक - ] कुलाल- भाण्डारिकाणां एतेषां भावाः तथैव कर्माणि ज्ञातव्यानि यथाक्रमम् । जैसे पट वस्त्र, प्रतीहार दरवान, असि खड्ग, मद्य
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