Book Title: Karmprakruti
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 134
________________ पण्डित श्री हेमराज विरचित हिन्दी टीकासहित कर्मप्रकृति पणमिय सिरसा णेमि गुणरयणविहूसणं महावीरं । सम्मत्तरयणणिलयं पयडिसमुक्त्तिणं वोच्छं ॥१॥ अहं नेमिचन्द्राचार्यः प्रकृतीनां समुत्कीर्तनं वक्ष्ये-मैं जो हूँ नेमिचन्द्र आचार्य सो कर्मनिकी प्रकृति नि वर्णन करूँगा। किं कृत्वा ? क्या करके ? नेमि प्रणम्य नेमिनाथं तीर्थकरं नमस्कृत्य-नेमिनाथ नामके जो बाईसवें तीर्थंकर हैं, उन्हें प्रणाम करके । कथंभूतं नेमि गुणरत्नविभूषणं अनन्तज्ञानादिगुणास्तान्येव विभूषणानि यस्य-कैसे हैं नेमिनाथ ? अनन्तज्ञानादि जो गुण वे ही हैं आभूषण जिनके ऐसे हैं। पुनः किंभूतम् ? बहुरि कैसे हैं ? महावीर महासुभटम्-महावीर कहिए महासुभट हैं । पुनः किंभूतम् ? बहुरि कैसे हैं ? सम्यक्त्वरत्ननिलयं स्थानम्-सम्यक्त्वरूप रत्नके निलय कहिए स्थान हैं। ____प्रकृतिशब्देन किमिति प्रश्नः, तत्रोच्यते-प्रकृति कहा कहिए यह आगेकी गाथामें दिखावे हैं-- पयडी सील सहावो जीवंगाणं अणाइसंबंधो। कणयोवले मलं वा ताणत्थित्तं सयं सिद्धं ॥२॥ प्रकृतिः शीलः स्वभाव एते शब्दास्त्रय एकार्थवाचकाः सन्ति-प्रकृति शोल अरु स्वभाव ये जो तीनों शब्द हैं सो एक ही अर्थकू कहै हैं । स्वभावो हि स्वभाववन्तं अपेक्षते । स्वभावः प्रकृतिः स्वभाववन्तं जीवं इच्छति--स्वभाव जो है सो स्वभाववानकी अपेक्षा करै है सो प्रकृतिनाम स्वभावको है, वह स्वभाववान् जीवकी अपेक्षा करै है। अत्र कश्चित्प्रश्नः करोति जीवः शुद्धश्चैतन्यः पुद्गलपिण्डस्तु जडः एतयोद्वयोः पृथक्-पृथक् लक्षणं वर्तते । एतौ द्वौ जीवपुद्गलौ तस्मिन् कुतः मिलितौ ? यहाँ कोई शिष्य प्रश्न करे कि जीव तो शुद्धचैतन्यरूर है, अरु पुद्गलपिण्ड जड अचेतन है। जब इन दोनोंके लक्षण भिन्न-भिन्न हैं, तब ये दोनों परस्पर कैसे मिले हैं ? तत्र प्रश्नोत्तरमुच्यते-जीवाङ्गयोः सम्बन्धः अनादिः-ऊपरके प्रश्नका उत्तर कहिए है कि जीव और पुद्गलका सम्बन्ध अनादि है। एवं न वाच्यं जीव-पुद्गलौ प्रथमतः भिन्नौ भिन्नौ, पश्चात् मिलितौ। ऐसा नाही कि जीव अरु पुद्गल पहले भिन्न-भिन्न थे, पाछे आपस में मिले हैं। कस्मिन् कयोरिव ? कनकोपलयोमलवत्-यथा एकस्मिन् पाषाणे स्वर्णोपलौ सार्धमेवोत्पद्यते । पुनः साधमेव द्वयोमध्ये मलस्तिष्ठति । जैसे एक स्वर्णपाषाणमें सोना अरु पाषाण. दोनों साथ-साथ ही मिलि रहे हैं, ऐसा नाही कि सोना पहले खानिविर्षे था, पाछे आय. कर पाषाणरूपमल मिलि गया होय। अत्र कश्चिद् वदति-जीवकर्मणोऽस्तित्वं कथं ज्ञातम ? तस्योत्तरं दीयते-इहाँ कोई प्रश्न करै है कि जीव अरु कर्मका अस्तित्व कैसे जानिए है, ताका उत्तर कहैं हैं-योरस्तित्वं स्वतः सिद्धम् ? केन ? दृष्टान्तेन–एकः दरिद्रः एकः श्रीमान् इति दृश्यते-जीव अरु कर्मका अस्तित्व स्वतः सिद्ध है। किस दृष्टान्त करि ? जो.कोई एक पुरुष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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