Book Title: Karmprakruti Author(s): Hiralal Shastri Publisher: Bharatiya GyanpithPage 72
________________ प्रकृतिसमुत्कीर्तन पंच संघादणामं ओरालिय तह य जाण वेउव्वं । आहार तेज कम्मण सरीरसंघादणाममिदि ॥७१।। शरीरसंघातनाम पञ्चविधम्--औदारिकशरीरसंघातनाम १ तथा वैक्रियिकशरीरसंघातनाम २ श्राहारशरीरसंघातनाम ३ तैजसशरीरसंघातनाम कार्मणशरीरसंवातनामेति ५ जानीहि ।५।२४।३४१ किमिदं नाम संघात इति चेत् यदुदयादौदारिकादिशरीराणां विवरविरहितानां परस्परप्रदेशानुप्रवेशेन एकत्वापादनं भवति तत्संघातनाम ॥७॥ समचउरस णिग्गोहं सादी कुज्जं च वामणं हुंडं । संठाणं छब्भेयं इदि णिट्ठि जिणागमे जाण ॥७२॥ संस्थानं षडभेदं परमागर्म निदिष्टं जानीहि । समचतुरस्रशरीरसंस्थाननाम १ न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननाम २ स्वातिसंस्थाननाम ३ कुब्जकसंस्थाननाम ४ वामनसंस्थाननाम ५ हुण्डकसंस्थाननाम ६३० ४० किमिदं नाम संस्थानम् ? यदुदयादौदारिकादिशरीराकारी भवति तत्संस्थानमिति । [तब्रोधिोमध्ये यु समप्रविभागेन शरीरावयवसन्निवेशव्यवस्थापनं कुशलशिल्पिनिर्वतितसमस्थितिचक्रवदवस्थानकर ] तत्समचतुरस्रसंस्थानम् १। यत उपरि विस्तीर्णा अधः पङ्कचितशरीरा द्वारा भवति तन्न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननाम २। यतोऽधोविस्तीर्ण उपरि संकुचितशरीराकारो भवति तत्स्वातिसंस्थाननाम । स्वातिवाल्मीकं तत्सादृश्यात् ३ । यतो हस्वसर्वशरीराकारो भवति तत्कुब्जकसंस्थाननाम ४ । यतो दोघहस्तपादा ह्रस्वकबन्धश्चैवं शरीराकारो मवति तद वामनसंस्थानम् ५। यत: पाषाणैः पूर्णगौणीवद ग्रन्थ्यादिविषमशरीराकारो भवति, तत् हण्डकसंस्थाननाम ६ ॥७२॥ विशेषार्थ-शरीर नामकर्मके उदयसे जीवने जो आहार वर्गणारूप पुद्गलके स्कन्ध ग्रहण किये हैं उनका जिस कर्मके उदयसे आपसमें सम्बन्ध होता है उसे बन्धन नामकर्म कहते हैं। संघात नामकर्मके भेद- . संघात नामकर्म पाँच प्रकारका है-१ औदारिक शरीर-संघात २ वैक्रियिक शरीरसंघात ३ आहारक शरीर-संघात ४ तैजस शरीर-संघात और ५ कार्मण शरीर-संघात ॥७१।। विशेषार्थ-जिस कर्मके उदयसे औदारिक आदि शरीरके परमाणु आपसमें मिलकर छिद्ररहित बन्धनको प्राप्त होकर एकरूप हो जाते हैं उसे संघात नामकर्म कहते हैं । संस्थान नामकर्मके भेद संस्थान नामकर्मके छह भेद जिनागममें कहे गये हैं जो इस प्रकार जानना चाहिए१ समचतुरस्रसंस्थान २ न्यग्रोधसंस्थान ३ स्वातिसंस्थान ४ कुब्जक संस्थान ५ वामनसंस्थान और ६ हुण्डकसंस्थान ।।७२।। ___विशेषार्थ-जिस कर्मके उदयसे शरीरका आकार ऊपर नीचे तथा बीचमें समान हो अर्थात् शरीरके अंगोपांगोंकी लम्बाई-चौड़ाई आदि सामुद्रिकशास्त्रानुसार यथास्थान ठीक-ठीक बने उसे समचतुरस्रसंस्थान कहते हैं। जिस कमके उदयसे शरीरका आकार न्यग्रोध (वट वृक्ष के समान नाभिके ऊपर मोटा और नाभिके नीचे पतला हो उसे न्यग्रोध परिमण्डलसंस्थान कहते हैं । जिस कर्मके उदयसे शरीरका आकार साँपकी वाँमीके सदृश ऊपर पतला 1. ब शरीराकृतिनिष्पत्तिः । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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