Book Title: Karmprakruti Author(s): Hiralal Shastri Publisher: Bharatiya GyanpithPage 61
________________ २६ दर्शनावरणप्रकृतिनामनवकमाह चक्खु-अचक्खू-ओही-केवलआलोयणाणमावरणं । 'एतो पभणिस्सामो पण णिद्दा दंसणावरणं ॥ ४७॥ चक्षुदर्शनावरणं १ चक्षुदर्शनावरणं २ अवधिदर्शनावरणं ३ केवलदर्शनावरणम् ४ । अतः परं पञ्चप्रकारं निद्वादर्शनावरणं वयं नेमिचन्द्राचार्या: 1 प्रभणिष्यामः ॥४७॥ पञ्चधा निद्रा का इति चेदाह - कर्म प्रकृति अह थी गिद्ध णिद्दाणिद्दा य तहेव पयलपयला य । णिद्दा पयला एवं णवभेयं दंसणावरणं ॥ ४८ ॥ अथेत्यनन्तरं स्त्यानगृद्धिः १ निद्रानिद्रा च २ तथैव प्रचलाप्रचला ३ निद्रा ४ प्रचला ५. एवं समुदितं दर्शनावरणं नवभेदं भवति । स्त्यानगृद्ध्यादिनिद्राणां लक्षणमाह-- [ स्त्याने ] स्वप्ने यया वीर्यविशेषप्रादुर्भावः सा स्त्यानगृद्धिः । अथवा स्त्याने स्वप्ने गृद्धयते दीप्यते यदुदयात् श्रात्तं रौद्रं बहु च कर्मकरणं सा स्त्यानगृद्धिः । इति स्त्यानगृद्धिदर्शनावरणम् १ | यदुदयात् निद्राया उपरि उपरि प्रवृत्ति-:स्वन्निद्रानिद्रादर्शनावरणम् २ | यदुदयात् आत्मा पुनः पुनः प्रवलयति तत्प्रचलाप्रचला दर्शनावरणम् । शोकश्रममदादिप्रभवा उपविष्टस्य पुंसः नेत्रगात्रविक्रियासूचिका [ प्रचला ] सैव पुनः पुनरावर्तमाना प्रचलाप्रचलेत्यर्थः ३ | यदुदयात् मदखेदक्कमविनाशार्थं शयनं तन्निद्रादर्शनावरणम् ४ । यदुदयात् या क्रिया आत्मानं प्रचलति तत्प्रचलादर्शनवारणमिति ५ ॥४८॥ पुनः स्त्यानगृद्ध्यादिलक्षणं गाथात्रयेणाऽऽह-वंदे सो कम्मं करेदि जंपदि वा । णिद्दाणिदण य ण दिट्टिमुग्धाडिदु सको ॥४६॥ 3 स्त्यानगृद्धिदर्शनावरणोदयेन उत्थापितेऽपि स्वपिति निद्रायां कर्म करोति जहाति च १ । निद्रानिद्रा - [ दर्शना ] वरणोदयेन बहुधा सावधानीक्रियमाणोऽपि दृष्टिमुद्घाटयितुं न शक्नोति २ ॥४९॥ उक्त चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवलदर्शनके आवरण करनेवाले कर्मको दर्शनावरण कहते हैं। इस कर्मके नौ भेद हैं जिनमें से चार भेदोंका स्वरूप कह दिया । अब पाँच निद्राओंका स्वरूप आगे कहते हैं ||४७ || दर्शनावरण कर्मके भेद चक्षुदर्शनावरण आदि चार भेदों के साथ स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला तथा निद्रा और प्रचला इन पाँच निद्राओंके मिला देनेपर दर्शनावरण कर्मके नौ भेद हो जाते हैं ॥४८॥ स्त्यानगृद्धि और निद्रानिद्राका स्वरूप- स्त्यानगृद्धिकर्मके उदयसे जीव उठाये जानेपर भी सोता ही रहता है, सोते हुए ही नींद में अनेक कार्य करता है और बोलता भी रहता है पर संज्ञाहीन रहता है । निद्रानिद्रा कर्मके उदयसे जगाये जानेपर भी आँखें नहीं उघाड़ सकता है ॥४६॥ Jain Education International. १. जब तत्तो । २. ज ब जप्पदि । ३. गो० क० २३ । 1. नास्त्ययं पाठः । 2. एष सन्दर्भः सर्वार्थसिद्धि ८ सू० ७ व्याख्यया प्रायः समानः । 3. ब निद्रानिद्रोदयेन । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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