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भंगिमा के द्वारा, स्मित के द्वारा, उपनिषदों के द्वारा । I 'ललित विस्तरा' तुल्य भक्ति की प्रबलतम ऊंचाई का ग्रन्थ हो और जिसकी प्रत्येक पंक्ति को अनुभवी पुरुष खोलते हों तब भावकों के लिए तो उत्सव-उत्सव हो जाये ।
परन्तु पहले कहा उस तरह साहबजी को देखने जाते हुए सुनना चूक गये व्यक्तियों के लिए और इस भक्ति पर्व को चूक गये व्यक्तियों के लिए है प्रस्तुत पुस्तक । पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर अथवा यों कहें कि उसकी प्रत्येक पंक्ति में है परम प्रिय की रसमय बातें । एक गंगा बह रही है और आप उसके तट पर बैठ कर उसके सुमधुर जल का आस्वादन कर रहे हैं। एक अनुभव । आप आचार्य भगवंत की उंगली पकड़कर प्रभु की दिशा की ओर जा रहे हैं। वैसा प्रतीत होता है... अनुभव... जो आपको सराबोर कर दे। पढ़ने का क्रम ऐसा रहेगा । दो-चार पंक्तियां अथवा एकआध पृष्ठ पढ़ा गया । अब नेत्र बंध हैं । आप उन शब्दों के द्वारा स्वयं को भरा जाता, बदलता अनुभव करते हैं। यहां पढ़ने का अल्प होगा, अनुभव करने का अधिक रहेगा ।
___ कवि मनोज खंडेरिया की काव्य-पंक्तियां हम गुनगुनाते होंगे - 'मने सद्भाग्य के शब्दो मल्या, तारे मुलक जावा ।' अन्यथा तो केवल अपने चरणों पर भरोसा रखकर चलें तो युग व्यतीत हो जायें और प्रभु का प्रदेश उतना ही दूर हो ।
प्रभु के प्रदेश की ओर ले जाने वाले सशक्त शब्दों से सभर पुस्तक आपके हाथों में है। अब आप हैं और यह पुस्तक है। मैं बीच में से बिदा लेता हूं । आप बहें इन शब्दों में, डूबें ।
- आचार्य यशोविजयसूरि
आचार्यश्री ॐकारसूरि आराधना भवन, वावपथक वाडी, दशा पोरवाल सोसायटी, अहमदाबाद.
पोष शुक्ला ५, वि. संवत् २०५७