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योग की अवधारणा : जैन एवं बौद्ध
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१. तराजू की ठगी, २. कंस यानी बटखरे की ठगी, ३. मान अर्थात् नाप की ठगी, ४. रिश्वत, ५. वचना, ६. कृतघ्नता, ७. साचियोग यानी कुटिलता, ८. छेदन, ९. वध, १०. बन्धन, ११. डाका, १२. लूट-पाट की जीविका आदि।
सम्यक्-व्यायाम - व्यायाम का अर्थ होता है -प्रयत्न। सम्यक्-दृष्टि, सम्यक्-संकल्प आदि के होते हुए भी ऐसी आंशका बनी रहती है कि पुराने कुप्रभावों के कारण साधक अपनी साधना-पथ से विचलित न हो जाए। अत: उसके लिए कुछ मानसिक व्यायाम बताये गये हैं
१. पुराने बुरे भाव को नष्ट करने का प्रयास, २. नये बुरे भाव को मन में न आने देने की चेष्टा, ३. मन को अच्छी बातों में पूर्ण रखना तथा ४. अच्छे विचारों को मन में प्रतिष्ठित करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना आदि, यही सम्यक्-व्यायाम है।
सम्यक्-स्मृति - सम्यक्-दृष्टि, सम्यक्-संकल्प, सम्यक्-वाक्, सम्यक्कर्मान्त आदि के आधार पर साधक को संसार की नश्वरता का ज्ञान हो जाता है, किन्तु ऐसा स्वाभाविक है कि वह इसे भूलकर कहीं पुन: संसार के राग-द्वेष में न बद्ध जाए। अत: उसे हमेशा यह याद रखना चाहिए कि यह संसार नश्वर है। मज्झिमनिकाय९४१ में चार प्रकार के स्मृति प्रस्थानों का वर्णन मिलता है -
१. कायानुपश्यना २. वेदानुपश्यना ३. चित्तानुपश्यना और ४. धर्मानुपश्यना। इन चार स्मृति प्रस्थान को सदा स्मृति में रखना ही सम्यक्-स्मृति है।।
___ कायानुपश्यना—काय में होनेवाली क्रियाओं को सूक्ष्मता से जानते रहना कायानुपश्यना स्मृति है। वेदानुपश्यना–सुख वेदना, दुःख वेदना, असुख-अदुःख वेदना में से जिस वेदना का अनुभव हो रहा हो, उसे उसी रूप में जानना वेदानुपश्यना-स्मृति कहलाती है। चित्तानुपश्यना-सराग चित्त, विराग चित्त आदि विभिन्न चित्तों में से जब जो चित्त जिस रूप में हो, उस समय उसे उसी रूप में जानने को चित्तानुपश्यना स्मृत्ति कहते हैं। धर्मानुपश्यना—विभिन्न प्रकार के धर्मों में जो धर्म हो उसे उसी रूप में जानना धर्मानुपश्यना स्मृति कहलाती है। धर्म भी कई प्रकार के कहे गये हैं - १. नीवरण २.
औद्धत्य ३. आयतन, ४. बोध्यंग, ५. आर्य चतुष्टय। इनके स्वरूप को ठीक-ठीक उसी रूप में जानना धर्मानुपश्यना स्मृति है।
सम्यक-समाधि - अष्टांगिक-मार्ग के उपर्युक्त सभी प्रकार सम्यक्-समाधि की पूर्व पीठिका हैं जिनमें समाधि के निमित्त सम्यक्-स्मृति की विशेष आवश्यकता पड़ती है। मज्झिमनिकाय में वर्णन आया है कि स्मृति-उपस्थान के चार प्रकार समाधि के निमित्त
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