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जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन
उपर्युक्त विश्लेषण के पश्चात् हम यह देखते हैं कि वर्तमान में आर्तध्यानी ही विशेष रूप से देखने को मिलते हैं। ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जो आर्तध्यान नहीं करता हो। कोई व्यक्ति प्रिय के वियोग से द:खी है तो कोई अप्रिय की प्राप्ति से, कोई किसी रोग से ग्रसित होने के कारण दु:खी है तो कोई काम-भोगों की प्राप्ति हेतु चिन्तित है। ये सभी आर्तध्यान के अन्तर्गत ही आते हैं। आर्तध्यानी के लक्षण
आर्तध्यान करनेवालों के मुख्यत: चार५२ लक्षण बताये गये हैं, जो निम्नलिखित हैं(१) आक्रन्दन-अर्थात् जोर-जोर से चिल्लाना। (२) शोचन- अर्थात् अश्रुपूर्ण आँखों से दीनता दिखाना। (३) परिवेदन- यानी विलाप करना। (४) ताडण- छाती, सिर आदि को पीटना।
उपर्युक्त चारों लक्षण इष्ट के वियोग, अनिष्ट के योग और वेदना के निमित्त से उत्पन्न होते हैं। जीव जोर-जोर से चिल्लाकर, छाती पीट-पीट कर रोता है, आँसू बहाता है, बाल नोचता है एवं वाणी से दिल का गुस्सा उतारता है।५३ इसीलिए आर्तध्यान को अशुभ, दुःखों से व्याप्त एवं समस्त क्लेशों से युक्त होने के कारण संसार-बंधन का हेतु माना गया है। रौद्रध्यान
रौद्रध्यान भी अप्रशस्त ध्यान के अन्तर्गत ही आता है जिसमें कुटिल भावों का चिन्तन किया जाता है। सामान्यत: रौद्र का अर्थ होता है-क्रोध, बर्बर, भयानक आदि। कहा भी गया है-“प्राणिनां रोदनाद् रूद्रः तत्र भवं रौद्रम्' अर्थात् क्रूर, कठोर एवं हिंसक व्यक्ति को रूद्र कहा जाता है और उस प्राणी अर्थात् जिसके द्वारा वह कार्य किया जाता है, के भाव को रौद्र कहते हैं। इसी आधार पर महापुराण में कहा गया है कि जो पुरुष प्राणियों को रुलाता है, वह रुद्र एवं क्रूर कहलाता है और उस पुरुष के द्वारा जो ध्यान किया जाता है वह रौद्रध्यान कहलाता है।५५ इस ध्यान को करनेवाला ध्यानी हिंसा, झठ, चोरी, धनरक्षा में लीन, छेदन-भेदन आदि प्रवृत्तियों में राग रखता है। चुगली करना, अनिष्ट सूचक वचन बोलना, रूखा बोलना, असत्य बोलना, जीवघात का आदेश आदि चिन्तन रौद्रध्यान के अन्तर्गत ही आते हैं।
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