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जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन श्वास-संयम : समवृत्ति श्वास-प्रेक्षा
विपश्यना में कुम्भक का प्रयोग नहीं होता है किन्तु प्रेक्षा में इसका प्रयोग किया जाता है। लयबद्ध श्वास भी प्रेक्षाध्यान में किया जाता है। जिसमें श्वास की प्रत्येक आवृत्ति समान होती है। इसकी विधि है-पाँच सेकेण्ड श्वास लेना, पाँच सेकेण्ड श्वास भीतर रोकना, पाँच सेकेण्ड श्वास बाहर निकालना, पाँच सेकेण्ड श्वास बाहर रोकना।२३२ इस प्रकार पुन: इस क्रिया को दोहराना चाहिए। प्रेक्षा में समवृत्ति श्वासप्रेक्षा का प्रयोग भी किया जाता है। विपश्यना में ऐसा कोई प्रयोग नहीं कराया जाता है। इस प्रयोग की विधि हैदाएं नथुने से श्वास लेकर बाएं नथुने से निकालें और बायें से श्वास लेकर दाएं नथुने से श्वास बाहर निकालें। चित्त और श्वास दोनों साथ-साथ चले, निरन्तर श्वास का अनुभव करें।२३३ इसके अतिरिक्त चन्द्रभेदी-श्वास, सूर्यभेदी-श्वास, उज्जाई-श्वास आदि अनेक प्रयोग प्रेक्षा को विपश्यना से अलग करते हैं, क्योंकि विपश्यना में ऐसा कोई प्रयोग नहीं कराया जाता है।
आसन- विपश्यना में आसन का निषेध है, क्योंकि बौद्ध साधना-पद्धति में आसन-सम्मत नहीं है। भगवान् महावीर ने आसनों को बहुत महत्त्व दिया है। स्थानांग में आसनों के अनेक प्रकार बतलाए गए हैं।२३४ भगवान् महावीर ने स्वयं अनेक आसनों के प्रयोग किये थे। यहाँ तक कि उन्हें केवलज्ञान भी एक विशिष्ट आसन गौदुहिका में उपलब्ध हुआ था।२३५ ध्यान के साथ आसन का होना अत्यन्त जरूरी है, क्योंकि ध्यान से पाचन-तंत्र गड़बड़ा जाता है और अग्नि मंद हो जाती है। आसन से स्वास्थ्य भी सुदृढ़ होता है और ध्यान से होनेवाली शरीर की हानियों से बचा जा सकता है।२३६
प्राणायाम- विपश्यना में प्राणायाम को महत्त्व नहीं दिया गया है। प्रेक्षा में यह प्रयोग किया जाता है। प्राण पर नियंत्रण करने के लिए प्राणायाम आवश्यक है। प्राण पर नियंत्रण किये बिना चंचलता पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता है। हठयोग में तो प्राणायाम को अलग से महत्त्व दिया गया है। जिसमें प्राणायाम के अनेक प्रकारों को बताया गया है।२३७
मौन- विपश्यना में मौन का प्रयोग बड़ी कड़ाई से कराया जाता है। पूरे शिविर काल तक मौन का प्रयोग होता है।२३८ प्रेक्षा में मौन पर इतना बल नहीं दिया गया है। उसमें मात्र सुझाव दिया जाता है कि अनावश्यक बातचीत न करें, आवश्यकता होने पर ही बोलें। मौन तभी पूर्ण होता है जब मन, वाणी और शरीर तीनों से उसका पूर्ण पालन किया जाय।
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