Book Title: Jain evam Bauddh Yog
Author(s): Sudha Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 291
________________ आध्यात्मिक विकास की भूमियाँ २७७ ११५. तस्य चतुर्थ्य: संग्रहवस्तुभ्यः प्रियवद्यता अतिरिक्ततमा भवति। दशभ्य: पारमिताभ्यः शीलपारमिताऽतिरिक्ततमा भवति। वही, पृ०- १८ ११६. दशभिश्चित्ताशयमनस्कारैराक्रमति----अतृप्तचित्ताशयमनस्कारेण च। वही, पृ०- १९ ११७. सत्त्वानामन्तिके दश चित्ताशयानुपस्थापयति---भवचारकावरुद्धप्रतिशरणचित्ताशयतां च---। वही, पृ०- १९ ११८. धर्मारामो धर्मरतो------धर्मत्राणो धर्मानुधर्मचारी। वही, पृ०- २० ११९. सोऽस्यां प्रभाकर्यां------चतुर्थ ध्यानमुपसंपद्य विहरति। वही, पृ०- २० १२०. मैत्रीसहगतेन------चित्तेन विहरति। वही, पृ० - २१ १२१. वही, पृ०- २४ १२२. वही, पृ०- २४ १२३. वही, पृ०- २४ १२४. छन्दसमाधिप्रहाणसंस्कारसमन्वागतं ऋद्धिपादं भावयति । वही, पृ०- २४ १२५. वही, पृ०-२४ १२६. श्रद्धाबलं भावयति--वीर्यबलं--स्मृतिबलं--समाधिबलं--प्रज्ञाबलं-- । वही, पृ०- २४ १२७. स्मृतिसम्बोध्यङ्ग----- धर्मप्रविचय,------वीर्य,---------प्रीति,----- प्रस्राब्धि,------- समाधि,------उपेक्षा------| वही, पृ०- २४ १२८. वही, पृ०- २४ १२९. वही, पृ०- २७ १३०. तस्य भूयस्या मात्रया सत्त्वेषु महाकरुणा अभिमुखीभवति, महामैत्र्यालोकश्च प्रादुर्भवति। वही, पृ०-२७ १३१. दश प्रकार की समताएँ निम्न हैं- १. अतीतबुद्धधर्मविशुद्ध्याशयसमतया २.अनागतबुद्धधर्मविशुद्ध्याशयसमतया ३. प्रत्युत्पन्नबुद्धर्धमविशुद्ध्याशयसमतया ४. शील विशुद्धयाशयसमतया ५. चित्तविशुद्ध्याशयसमतया ६. दृष्टिकाङ्क्षाविमतिविलेखापनयनविशुद्ध्याशयसमतया ७. मार्गामार्गज्ञानविशुद्ध्याशयसमतया ८. प्रतिपत्प्रहाणज्ञानविशुद्ध्याशयसमतया ९. सर्वबोधिपक्ष्यधर्मोत्तरोत्तरविभावनविशुद्ध्याशयसमतया १०. सर्वसत्त्वपरिपाचनविशुद्ध्याशयसमतया। वही, पृ०- २७ १३२. स दशभिर्धर्मसमताभिरवतरति------सर्वधर्माजाततया च------। वही, पृ०-३१ १३३. वही,पृ०-३१ . १३४. नैरात्म्यनिःसत्त्वनिर्जीवनिष्पुद्गलतां-------नोत्सृजति। वही, पृ०- ३६ । १३५. दश पारमिता निम्नलिखित हैं- १. दान पारमिता २. शील पारमिता ३. क्षान्ति पारमिता ४. वीर्य ५. ध्यान ६. प्रज्ञा ७. उपाय कौशल ८. प्रणिधान ९. बल और १०. ज्ञान । १३६. चार संग्रह वस्तु-दान, प्रियवचन, अर्थ क्रिया तथा समानार्थता। १३७. चार अधिष्ठान- सत्य, त्याग, उपशम तथा प्रज्ञा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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