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जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन
जो
समवायांग ४२ में तीव्रतम मोहनीयकर्म बन्ध के तीस कारण बताये गये हैं, इस प्रकार हैं
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(१) जो त्रस प्राणी को पानी में डूबाकर उसका प्राणघात करता है ।
(२) जो त्रस प्राणी को उसके मस्तक में गीला चमड़ा बांध कर मारता है।
(३) जो त्रस प्राणी को उसका मुँह बांधकर मारता है।
(४) जो त्रस प्राणी को अग्नि के धुँए में घुट-घुटकर मारता है।
(५) जो किसी त्रस प्राणी को मस्तक का छेदन करके मारता है। (६) जो किसी त्रस प्राणी को छल से मारकर हँसता है।
(७) जो असत्य बोलकर अपना अनाचार छिपाता है।
(८) जो अपने दुराचार को छिपाकर दूसरे पर कलंक लगाता है।
(९) जो कलह बढ़ाने के लिए सब कुछ जानता हुआ भी मिश्रित भाषा का प्रयोग करता है।
(१०) जो पति-पत्नी में कलह पैदा करता है तथा उन्हें मार्मिक वचनों से झेपा देता है। (११) जो स्त्री में आसक्त व्यक्ति अपने आप को कुँवारा कहता है ।
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(१२) जो व्यक्ति अत्यन्त कामुक होते हुए भी अपने को ब्रह्मचारी कहता है । (१३) जो चापलूसी करके अपने मालिक को ठगता हो ।
(१४) जो जिनकी कृपा से समृद्ध बना है, ईर्ष्यावश उनके ही कार्यों में विघ्न डालता है।
(१५) जो अपने उपकारी की हत्या करता है।
(१६) जो प्रसिद्ध पुरुष को असंयम के पथ पर अग्रसर करता है ।
(१७) जो प्रमुख पुरुष का प्राणघात करता है।
(१८) जो संयमी पुरुष को असंयम के पथ पर अग्रसर करता है ।
(१९) जो महान् पुरुषों की निन्दा करता है ।
(२०) जो न्याय मार्ग की निन्दा करता है ।
(२१) जो आचार्य, उपाध्याय एवं गुरु की निन्दा करता है । (२२) जो अबहुश्रुत होते हुए भी अपने-आप को बहुश्रुत कहता है ।
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