Book Title: Jain evam Bauddh Yog
Author(s): Sudha Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 321
________________ बन्धन एवं मोक्ष ३०७ अतीन्द्रिय और बुद्धिविकल्पातीत है, जहाँ द्वैत और बहुत्व विलीन हो जाते हैं। वह अद्वैतानुभव ही तत्त्व है। ११६ निर्वाण निष्क्रियता नहीं निर्वाण प्राप्त व्यक्ति के लिए कुछ करणीय शेष नहीं रह जाता । प्राप्तव्य को वह पा चुकता है। यही कारण है कि निर्वाण के सम्बन्ध में ऐसी धारणा बन जाती है कि यह क्रियाशीलता से विहीन होने की स्थिति है, क्योंकि इसमें कोई क्रिया नहीं होती, मुक्त पुरुष अकर्मण्य हो जाता है। लेकिन यह मानना / कहना उचित नहीं जान पड़ता, क्योंकि साधक अपनी साधना के समय अपने को सांसारिक कार्य-व्यापारों से उदासीन रखता है। यदि वह ऐसा न करे तो यथार्थता की ओर उसका ध्यान ही केन्द्रित नहीं होगा और न ही उसे ज्ञान की प्राप्ति ही होगी। लेकिन साधक का सांसारिक कार्य-व्यापारों से उदासीन रहना तभी तक होता है, जब तक वह साधनारत होता है । साध्य या लक्ष्य की उपलब्धि के बाद वह पुन: समाज में ही रहता है, समाज की सेवा करता है, लोगों को धर्म - मार्ग दिखाता है। अतः निर्वाण को निष्क्रियता कहना उचित नहीं है। निर्वाण तो निष्काम है राग-द्वेष से मुक्त होकर काम करना निष्काम कहलाता है। निर्वाण निष्क्रियता अथवा अकर्मण्यता की स्थिति नहीं है बल्कि निष्काम की स्थिति है । भगवान् बुद्ध ने भी श्री कृष्ण की भाँति निष्काम की शिक्षा दी है । अंगुत्तरनिकाय में कहा गया है कि राग के नाश हो जाने पर राग-द्वेष रहित कार्य से कोई कष्ट या बन्धन नहीं होता है । ११७ निर्वाण से लाभ निर्वाण से दो प्रकार के लाभ होते हैं- १. वर्तमान जीवन में परम शान्ति की प्राप्ति, तथा २. पुनर्जन्म की प्रक्रिया की समाप्ति । वर्तमान जीवन में शान्ति राग-द्वेष से मुक्त हुआ व्यक्ति ही प्राप्त करता है, क्योंकि राग-द्वेष से ही शान्ति में खलल आती है। इसी प्रकार निर्वाण प्राप्त करने के बाद पुनर्जन्म नहीं होता और जब जन्म ही नहीं होता तो किसी प्रकार के कष्ट का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। भगवान् बुद्ध ने स्पष्ट शब्दों में कहा है- "वह मृषा है जो नाशवान है, जो नाशवान नहीं है वह निर्वाण है । ११८ निर्वाण अमृतपद है, योगक्षेम है, अच्युतपद है, शान्त है, शिव है, ध्रुव है, त्राण है, द्वीप है, सत्य है, अत्यन्त सुख है, परम अतीत है, निष्प्रपंच है, अस्ति धर्म है, सत् है। जिस प्रकार ऋणी व्यक्ति को ऋण चुकाने के बाद प्रसन्नता होती है, बीमार व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ से जो सुख मिलता है, दासता से मुक्त होने पर दास को जो आनन्द मिलता है, बड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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