Book Title: Jain evam Bauddh Yog
Author(s): Sudha Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 333
________________ उपसंहार . ३१९ तथा व्यग्रता का नाश होता है और आनन्द सुख के स्रोत जो अन्तर्मन में बन्द रहते हैं, खुल जाते हैं। यदि यह कहा जाए कि भटकते हुए मानव को यदि कोई त्राण दे सकता है तो वह है सद्ध्यान, तो कोई अनुचित नहीं होगा। आज भारतीय योग और ध्यान की साधना-पद्धतियों को विद्वत्जन अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही पश्चिम के लोगों का ध्यान के प्रति बढ़ते आकर्षण को देखते हुए ध्यान को पश्चिमी लोगों की रुचि के अनुकूल बनाकर विदेशों में स्थानान्तरित कर रहें हैं। योग और ध्यान की साधना में शारीरिक विकृतियों और मानसिक तनावों से संत्रस्त पश्चिमी देशों के लोग चैतसिक शान्ति का अनुभव कर रहे हैं और यही कारण है कि उनका योग और ध्यान के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। अब प्रश्न उठता है कि क्या जैन एवं बौद्ध योग साधना-पद्धति आज के युग में पीड़ित मानव जाति को उससे त्राण दिलाने में सक्षम है? प्रति उत्तरस्वरूप यही कहा जा सकता है कि जैन एवं बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में जो परम्परागत योग-साधना या ध्यान पद्धतियाँ चली आ रही थीं उनमें आधुनिक युग में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। तात्पर्य यह है कि प्राचीन साधना-पद्धति जो मात्र साधकों तक ही सीमित थी उसे आज आम जनता के समक्ष सरलतम रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। भगवान् बुद्ध की ध्यान-साधना की विपश्यना पद्धति जो प्राय: भारत से लुप्त सी हो गयी थी, को श्री सत्यनारायण जी गोयनका ने बर्मा से लाकर पुनर्जीवित करने का प्रयास किया । जिससे आज भी भारत में विपश्यना ध्यान-पद्धति जनमानस तक पहुँच पा रही है। इसी आधार पर जैन ध्यान-साधना की पद्धति क्या रही होगी, इसको जानने का प्रयास किया गया । सम्पूर्ण जैन समाज ही नहीं बल्कि पूरे विश्व का यह सद्भाग्य है कि जैन तेरापंथ आचार्यश्री महाप्रज्ञजी जैसे प्राज्ञ साधक विपश्यना ध्यान से जुड़े और उसे आधुनिक मनोविज्ञान तथा शरीर-विज्ञान के आधार पर परखा। उन्हें जैन साधनापद्धति से आपूरित करते हुए प्रेक्षाध्यान की जैन परम्परा को पुनर्जीवित किया। आज प्रेक्षाध्यान की वैज्ञानिकता और उपयोगिता पर कोई भी प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है। विपश्यना ध्यान-पद्धति, प्राचीन हठयोग की षटचक्र भेदन आदि की अवधारणा, आधुनिक मनोविज्ञान तथा शरीर-विज्ञान को समन्वित करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ जी ने जो प्रेक्षाध्यान की वैज्ञानिक पद्धति दी है उनकी प्रतिभा एवं विद्वता का द्योतक है। आज के इस भौतिकवादी युग में "प्रेक्षाध्यान" तथा "विपश्यना' सम्यक् जीवन यापन के लिए अत्यन्त ही आवश्यक है। इसके लिए समस्त मानव जाति आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी तथा श्री सत्यनारायण जी गोयनका की ऋणी रहेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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