Book Title: Jain evam Bauddh Yog
Author(s): Sudha Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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बन्धन एवं मोक्ष
६
तत्त्वार्थवार्तिक-१०/२ ६२. भारतीय दर्शन की समस्याएं, डॉ० बी० एन० सिन्हा, पृ०-९३-९४ ६३. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्गः, तत्त्वार्थसूत्र, १०/१
सदृष्टिज्ञानवृतानि धर्मं धर्मेश्वरा विदुः ।
यदीयप्रत्यनीकानि भवन्ति भवपद्धतिः ।। रत्नकरण्डश्रावकारचार, १/३ ६५. कर्मबन्धन और मुक्तिप्रक्रिया, पृ०-२०५ ६६. आचारांग, १/६/५
६७. स्थानांग, १०/१६ ६८. समवायांग, १०/६१ ६९. उत्तमः क्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः।
तत्त्वार्थसूत्र, ९/६ ७०. वही (पं० सुखलाल संघवी), पृ०-२०८ ७१. दशवैकालिक, ८/३८
७२. वही, ८/३९ ७३. तत्त्वार्थसूत्र, पृ०-२०८
७४. आवश्यकसूत्र, क्षमापणा पाठ ७५. तत्त्वार्थसूत्र, पृ०-२०९
७६. वही, पृ०-२१०, ७७. वही, पृ०-२१०
७८. वही ७९. वही
८०. वही ८१. निशीथचूर्णि, ४६ ८२. दश लक्षण धर्म के, श्रमण, सितम्बर, १९८३. ८३. तत्त्वार्थसूत्र, पृ०-२१०
८४. वही ८५. मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थ्यानिसत्वगुणाधिकक्लिश्यमानाविनेयेषु । वही, ४/६ ८६. वही, पं. सुखलाल संघवी, पृ०- १७१ ८७. वही, पृ०- १७१. ८८. वही, पृ०-१७२. ८९. संयुक्तनिकाय- ३६/८, ४३/७/३, ४३/७/३, ४५/७/५, ४५/५१०, तथा
बौद्ध धर्म-दर्शन (आचार्य नरेन्द्रदेव), पृ० - २४५ ९०. सम्मादिट्ठिसूत्र (मज्झिमनिकाय),१/१/९. ९१. पुरिमा भिक्खवे कोटि न पंज्ञायति अविज्जाय, इतो पुब्बे अविज्जा नाहोसि, अथ
पच्छा समभवीतिता अंगुत्तरनिकाय, भाग५, पृ०-११३. अनमततगोयं भिक्खवे संसारो पुब्वकोटि न पंज्ञायति। संयुक्तनिकाय, भाग-२,
पृ०- १७८. ९३. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, पृ०-३७९. ९४. वही ९५. निदान सुत्त , ५१ ९६. सम्मदिट्ठि सुत्त (म० नि०),१/१/९.
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