Book Title: Jain evam Bauddh Yog
Author(s): Sudha Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 309
________________ बन्धन एवं मोक्ष २९५ अन्तराय। यह सदेहमुक्ति की स्थिति है। आयु, नाम, गोत्र और वेदनीय आदि अघातीय कर्मों का क्षय नहीं होता। फलत: जीव के नाम, गोत्र, आदि बने रहते हैं और जब जीव शरीर का परित्याग कर देता है, तभी मोक्ष या विदेह-मुक्ति की प्राप्ति होती है। विदेहमुक्ति ही मोक्ष है। बन्धन और मोक्ष की प्रक्रिया को समझाते हुए डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा ने लिखा है-“कर्म-सम्पर्क और कर्म-विच्छेद की प्रक्रिया में चार स्थल आते हैं - (i) आस्रव, (ii) बन्ध (iii) संवर और (iv) निर्जरा। इनमें से प्रथम दो बंधन से और शेष दो मोक्ष से सम्बन्धित हैं। कर्मों का जीव के निकट आना आस्रव, कर्मों के द्वारा जीव का प्रभावित हो जाना बन्धन, आते हुए कर्मों को जीव के द्वारा रोकना संवर तथा आए हुए कर्मों को भोगना अथवा फलाभाव करना निर्जरा है। इन्हें हम एक उदाहरण के द्वारा स्पष्टत: समझ सकते हैं। किसी व्यक्ति के घर के निकट एक गड्ढ़ा है, जिसमें पानी एकत्रित होता रहता है और पानी के सड़ जाने से दुर्गन्ध फैलती है। वह व्यक्ति दुर्गन्ध से मुक्त होना चाहता है। इसके लिए उसे क्या करना चाहिए? (i) गड्ढ़े में पानी आ रहा है। (ii) गडढ़े में एकत्रित होकर तथा सड़कर पानी दुर्गन्ध फैला रहा है। (iii) आते हुए पानी को रोक दिया जाए ताकि गड्ढे में पानी एकत्रित न हो और उससे दुर्गन्ध पैदा न हो । (iv) जितना पानी आ चुका है उसे बाहर फेंक दिया जाए अथवा धूप में सूख जाने के लिए छोड़ दिया जाए। यही चार स्थितियाँ आस्रव, बन्ध, संवर और निर्जरा की है। गड्ढे में पानी का आना मानों कर्मों का जीव के पास आना (आस्रव), पानी का एकत्रित होना तथा सड़कर दुर्गन्ध फैलाना मानों जीव पर कर्मों के द्वारा अपना प्रभाव फैलाना (बन्ध) है, गड्ढ़े में आते हुए पानी को रोक देना ताकि पानी एकत्रित होकर दुर्गन्ध न फैला सके मानों जीव के द्वारा अपने सम्पर्क में आते हुए कर्मों को रोकना है ताकि कर्मों का प्रभाव बढ़े नहीं (संवर) और गड्ढ़े में एकत्रित पानी को बाहर फेंक देना मानों जीव के पास आए हुए कर्मों को समाप्त करना (निर्जरा) है।'६२ निर्जरा की स्थिति में साधक कैवल्य प्राप्त करके सर्वज्ञ हो जाता है। यही जीवन्मुक्त या सदेहमुक्त की स्थिति होती है। परन्तु जब सम्पूर्ण कर्म अर्थात् घातीय और अघातीय दोनों कर्म समाप्त हो जाते हैं तब जाकर जीव को विदेहमुक्ति की प्राप्ति होती है। विदेह मुक्ति ही पूर्ण मोक्ष की स्थिति है। मोक्ष के उपाय (मार्ग) तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वाति ने मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग बतलाये हैं- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र।६३ इन तीनों के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति सहजत: होती है। जैन दर्शन में इन्हें 'त्रिरत्न' के नाम से जाना जाता है।ये मानो मानव जीवन के अलंकरण हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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