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जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन
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ठीक इसके विपरीत 'मिथ्यादर्शन', मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र संसार के मार्ग कहे गये हैं।६४ जब सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक् चारित्र तीनों साधन परिपूर्ण रूप से प्राप्त होते हैं, तभी सम्पूर्ण मोक्ष सम्भव होता है। इन तीनों में से किसी एक के अभाव में मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती । भगवान् महावीर ने कहा है - जो सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक् - आचरण सम्पन्न होते हैं, मुक्त होते हैं । ६५
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् - तप का विस्तृत वर्णन पूर्व में द्वितीय अध्याय में किया जा चुका है, जिसका पुनः विवेचन करना उचित नहीं जान पड़ता। लेकिन इनके अतिरिक्त भी मोक्षमार्ग के तत्त्व बताये गये हैं, जो निम्नलिखित हैंदश धर्म
जैन परम्परा में दश प्रकार के धर्मों का वर्णन किया गया है जो गृहस्थ और श्रमण दोनों के लिए समान रूप से आचरणीय है। आचारांग में आठ सामान्य धर्मों का उल्लेख मिलता है। कहा गया है कि जो धर्म में उत्थित अर्थात् तत्पर हैं उनको और जो धर्म में उत्थित नहीं हैं उनको भी निम्नलिखित बातों का उपदेश देना चाहिए- शांति, निरति, उपशम, निवृत्ति, शौच, आर्जव, मार्दव और लाघव । ६६ स्थानांग और समवायांग' में भी इन्हीं धर्मों का उल्लेख मिलता है। यद्यपि स्थानांग एवं समवायांग की सूची आचारांग से थोड़ी भिन्न है। तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार दस धर्म ६९ निम्नलिखित हैं
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क्षमा-क्षमा का अर्थ होता है- अनुचित व्यवहार के बाद भी किसी व्यक्ति के प्रति मन में आये क्रोध को विवेक तथा नम्रता से निष्फल कर डालना । • दशवैकालिक में कहा गया है- क्रोध प्रीति का विनाशक है । ७१ क्रोध कषाय के उपशमन के लिए क्षमा धर्म का विधान है। क्षमा के द्वारा ही क्रोध पर विजय प्राप्त किया जा सकता है । ७२ क्षमा- साधना के पाँच उपाय हैं७३
(१) अपने में क्रोध के निमित्त के होने या न होने का चिन्तन करना ।
(२) क्रोधवृत्ति के दोषों का विचार करना ।
(३) बाल स्वभाव का विचार करना।
(४) अपने किये हुए कर्म के परिणाम का विचार करना ।
(५) क्षमा के गुणों का चिन्तन करना ।
जैन साधक का प्रतिदिन का यह उद्घोष होता है कि मैं सभी प्राणियों को क्षमा
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